अब धर्म, सत्ता, कॉरपोरेट और मीडिया के चार पाटों के बीच पिस रही है अयोध्या

'मुख्यधारा' के मीडिया को अयोध्या से जुड़ी ख़बर तब ही महत्वपूर्ण लगती है, जब किसी तरह की सरकारी दर्पोक्ति या सनसनीखेज़ बयान उससे जुड़ा हो. यह पुलिस उत्पीड़नों या अपराधियों के खेलों की ही अनदेखी नहीं कर रहा, बल्कि उसे हज़ारों घरों, दुकानों, पेड़ों आदि की बलि देकर ‘भव्य’ बनाई जा रही अयोध्या की यह ख़बर देना भी गवारा नहीं कि गरीबों का यह तीर्थ अब जल्दी ही उनकी पहुंच से बाहर होने वाला है.

सरकार ने देश को अंधेरे में रखा, एमएसपी को लेकर समिति नहीं बनाना चाहती: राकेश टिकैत

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार पर अपने उन उद्योगपति दोस्तों की मदद करने के लिए एमएसपी पर क़ानून नहीं बनाने का आरोप लगाया, जो कम दरों पर किसानों से फसल ख़रीदते हैं और उच्च कीमतों पर प्रसंस्कृत उत्पाद बेचते हैं.

सामाजिक ताने-बाने पर चोट और बढ़ती सांप्रदायिकता पर कॉरपोरेट वर्ग चुप क्यों है

वर्तमान परिस्थितियों को लेकर कॉरपोरेट अग्रणियों के बीच पसरे विराट मौन में शायद ही कोई अपवाद मिले. यह बात अब शीशे की तरफ साफ हो गई है कि मौजूदा निज़ाम में कॉरपोरेट समूहों और हिंदुत्व वर्चस्ववादी ताकतों की जुगलबंदी नए मुकाम पर पहुंची है.

किसानों के जैसी चुनौती इतिहास में भाजपा को किसी ने नहीं दी है

नाइंसाफी के ख़िलाफ़ किसानों ने इतिहास में हमेशा प्रतिरोध किया है, बार-बार किया है. मौजूदा किसान आंदोलन भी उसी गौरवशाली परंपरा का अनुसरण कर रहा है.

कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस की सिफ़ारिश पर राजन और आचार्य ने आरबीआई की आलोचना की

आरबीआई द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह ने पिछले सप्ताह सिफ़ारिश की थी कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिया जा सकता है. रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने कहा है कि भारत में बड़ी कंपनियों के पिछले कुछ साल में क़र्ज़ लौटाने को लेकर चूक देखते हुए हमें बैंकों में कॉरपोरेट क्षेत्र को स्वामित्व देने की अनुमति को लेकर संदेह है.

जब पत्रकार सत्ता की भाषा बोलने लगें…

सरकार के हस्तक्षेप या प्रबंधन के दबाव का आरोप लगाना एक कमज़ोर बहाना है- मीडिया पेशेवरों ने स्वयं ही ख़ुद को अपने आदर्शों से दूर कर लिया है. वे बेआवाज़ को आवाज़ देने या सत्ताधारी वर्ग से जवाबदेही की मांग करने वाले के तौर पर अपनी भूमिका नहीं देखते हैं. अगर वे खुद व्यवस्था का हिस्सा बन जाएंगे, तो वे व्यवस्था से सवाल कैसे पूछेंगे?

बैंक क़र्ज़ की हेराफेरी के मामले मे ‘न्यू इंडिया’ में कुछ नहीं बदला

चाहे हीरा-व्यापार का मामला हो या बुनियादी ढांचे की कुछ बड़ी परियोजनाएं, काम करने का तरीका एक ही रहता है- परियोजना की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और बैंकों व करदाताओं का ज़्यादा से ज़्यादा पैसा ऐंठना.

आर्थिक सुधारों के बाद से उद्योग घरानों ने ही बैंकों को लूटा है

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.

सब कुछ बदलने का वादा करके आए मोदी ने भ्रष्ट आर्थिक नीतियों को ही आगे बढ़ाया

आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब ​नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.

प्रधानमंत्री जी, आम लोगों की मेहनत की कमाई से कॉरपोरेट लूट की भरपाई कब तक होती रहेगी?

पिछली सरकारों में व्यवस्था को अपने फ़ायदे के लिए तोड़ने-मरोड़ने वाले पूंजीपति मोदी सरकार में भी फल-फूल रहे हैं.

बैंकों ने पिछले छह महीने में 55,356 करोड़ रुपये का कर्ज़ माफ़ किया

पिछले नौ साल में बैंकों ने 2 लाख 28 हज़ार रुपये का लोन माफ़ कर दिया है. क्या इससे अर्थव्यवस्था पर कोई फर्क पड़ा, सिर्फ़ किसानों के समय फ़र्क पड़ता है.

जन गण मन की बात, एपिसोड 157: कॉरपोरेट क़र्ज़माफ़ी पर अरुण जेटली की सफ़ाई

जन गण मन की बात की 157वीं कड़ी में विनोद दुआ कॉरपोरेट क़र्ज़माफ़ी को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली की सफ़ाई के बारे में चर्चा कर रहे हैं.

कॉरपोरेट की क़र्ज़माफ़ी से विकास होता है, किसानों की क़र्ज़माफ़ी विकास-विरोधी है

भाषणों में पूरी राजनीति और सरकार किसानों-ग़रीबों को समर्पित है लेकिन किसान अपनी उपज समर्थन मूल्य से भी कम पर बेचने को मजबूर है.

शौर्य डोभाल की तरह हर भारतीय को पाकिस्तानियों के साथ काम करने की छूट दे भाजपा सरकार

मोदी सरकार के मंत्रियों को जूनियर डोभाल से सीख लेकर पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के प्रति नफ़रत दिखाना बंद कर देना चाहिए.