लोकसभा चुनाव: क्या उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता ख़ुद भाजपा के लिए चुनौती बन सकती है?

समानता के नाम पर पुष्कर सिंह धामी सरकार की जिस यूसीसी का ढोल सारे देश में पीटा जा रहा है उसमें 'निवासी' को लेकर जो परिभाषा दी गई है उसने नया बवाल खड़ा कर दिया है और इस पर सत्तारूढ़ दल को जवाब देते नहीं बन रहा है.

समान नागरिक संहिता के बारे में क्या सोचते हैं उत्तराखंड के लोग

वीडियो: उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता विधेयक पारित कर दिया है, जो राज्य के आदिवासी समुदाय को छोड़कर सभी समुदायों पर लागू होगा. इस विधेयक में विवाह, तलाक़ समेत लिव-इन रिलेशनशिप के लिए भी विभिन्न प्रावधान दिए गए हैं. इस बारे में राजधानी देहरादून के लोगों से बातचीत.

भारतीय जेलों में 561 क़ैदी मौत की सज़ा पाए हुए थे, 20 वर्षों में यह संख्या सबसे अधिक: रिपोर्ट

‘भारत में मृत्युदंड: वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट’ में कहा गया है कि वर्ष 2023 में देश भर में निचली अदालतों द्वारा 120 मौत की सज़ाएं सुनाई गईं, जिनमें सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में 33 रही. 2023 में निचली अदालतों में सबसे अधिक मौत की सज़ा यौन अपराधों से जुड़े हत्या के मामलों में दी गई, जो 120 मौत की सज़ाओं में से 64 है.

विधेयक से कुछ समुदायों को बाहर रखा गया है तो वह समान नागरिक संहिता कैसे हुई: उत्तराखंड कांग्रेस

वीडियो: उत्तराखंड में भाजपा नेतृत्व वाली पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने हाल ही में समान नागरिक संहिता विधेयक विधानसभा में पारित कर दिया. इस मुद्दे को लेकर उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष करन माहरा से द वायर के अतुल होवाले की बातचीत.

क्या उत्तराखंड के ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का सहारा लिया गया है?

उत्तराखंड के सुदूर गांवों, तहसीलों और क़स्बों में आम आदमी और लिखे-पढ़े लोग भी पूरी तरह भ्रमित हैं कि बेशुमार समस्याओं से घिरे इस छोटे-से प्रदेश में अफ़रा-तफ़री में पारित हुए विवादास्पद यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल से उनकी ज़िंदगी किस तरह से बदलेगी.

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता, निशाने पर मुसलमान

वीडियो: उत्तराखंड विधानसभा में पुष्कर सिंह धामी की सरकार द्वारा पेश समान नागरिक संहिता विधेयक पारित कर दिया गया है. इसे लेकर द वायर की ​सीनियर ​एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नज़रिया.

मिसोजिनीज़: जोन स्मिथ की ये किताब समाज में पसरे स्त्रीद्वेष को उघाड़कर रख देती है

पुस्तक समीक्षा: 1989 में इंग्लैंड की पत्रकार जोन स्मिथ द्वारा लिखी गई 'मिसोजिनीज़' जीवन के हरेक क्षेत्र- अदालत से लेकर सिनेमा तक व्याप्त स्त्रीद्वेष की पड़ताल करती है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें, तो स्त्रीद्वेष की व्याप्ति असीमित दिखने लगती है.

गुलज़ार आज़मी, जिन्होंने आतंकी मामलों में फंसाए गए लोगों के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ी

स्मृति शेष: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के लीगल सेल के सेक्रेटरी गुलज़ार आज़मी नहीं रहे. आज़मी की देखरेख में ही जमीयत एक सामाजिक-धार्मिक संगठन से क़ानूनी मदद देने वाला संगठन बना, जिसने आतंकवाद से जुड़े मामलों में फंसाए गए लोगों की न्याय तक पहुंच बनाने का काम किया.

उच्च न्यायालयों में 30 वर्षों से अधिक समय से 71,000 से अधिक मामले लंबित

लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि इस साल 24 जुलाई तक ज़िला और अधीनस्थ अदालतों में 1,01,837 मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित थे. इससे पहले उन्होंने राज्यसभा में बताया था कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं.

विभिन्न अदालतों में केंद्र से जुड़े 6.36 लाख से अधिक मामले लंबित: सरकार

केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने संसद में बताया कि केंद्र सरकार से जुड़े कुल लंबित मामलों की संख्या 6,36,605 है. इसमें से अकेले वित्त मंत्रालय 1,79,464 मुक़दमों में शामिल है. इन मुक़दमों पर वर्ष 2022-23 में 54.35 करोड़ रुपये ख़र्च किया गया था.

भारतीय उपमहाद्वीप में हर दूसरे रोज़ आहत हो रही भावनाओं पर बात करने का हक़ किसे है?

पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक भारतीय उपमहाद्वीप में आए दिन किसी न किसी की आहत भावनाओं की बात होती रहती है और उसकी स्वाभाविक प्रतिकिया के तौर पर उत्पाती समूहों द्वारा इसका बदला लेने के लिए की गई हिंसा की ख़बर आती रहती है, लेकिन सवाल है कि आख़िर किसकी भावनाएं आहत होती हैं?

अतीक़-अशरफ़ हत्या: सवाल क़ानून के राज का है

कुछ गैंगस्टरों की हत्या होगी और कुछ अन्य को आज संरक्षण मिलेगा, कल ज़रूरत पड़ने पर उनकी भी हत्या होगी. आम नागरिक को टीवी पर जय श्री राम के नारों के साथ हत्याओं का लाइव टेलीकास्ट दिखाया जाएगा ताकि वो 56 इंच छाती की तारीफ़ करे.

जेलों में क्षमता से अधिक क़ैदी, अदालतें ये सुनिश्चित करें कि सुनवाई तेज़ी से हों: सुप्रीम कोर्ट

एक आरोपी को ज़मानत पर रिहा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में अत्यधिक भीड़ है और क़ैदियों के रहने की स्थिति भयावह है. ऐसे में अगर मुक़दमे समय पर समाप्त नहीं होते हैं, तो व्यक्ति के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा.

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