सरकार द्वारा कोविड-19 टीकाकरण की बुकिंग के लिए बनाए गए कोविन ऐप पर अपलोड की गई नागरिकों की निजी जानकारी टेलीग्राम ऐप पर डालने की खबर सामने आई है. विपक्षी दलों ने इसकी गहन जांच की मांग की, साथ ही कांग्रेस ने सरकार के संपूर्ण डेटा प्रबंधन तंत्र की न्यायिक जांच की मांग की.
मलयाला मनोरमा की रिपोर्ट बताती है कि अगर किसी व्यक्ति का मोबाइल नंबर टेलीग्राम पर डाला जाता तो रिप्लाई बॉट (Reply bot) फ़ौरन उसके द्वारा कोविन ऐप पर दिए गए विवरण जैसे आधार, पासपोर्ट या पैन कार्ड की जानकारी मुहैया करा देता. साथ ही, इसमें व्यक्ति का जेंडर, जन्मतिथि और उन्होंने कहां वैक्सीन ली, यह जानकारी भी थी. केंद्र सरकार ने डेटा लीक से इनकार किया है.
कोविड टीकाकरण के कथित प्रतिकूल प्रभावों से दो लड़कियों की मौत के मामले में उनके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस संबंध में केंद्र सरकार ने अदालत में पेश हलफ़नामे में कहा है कि टीकों के इस्तेमाल से मौत के मामलों के लिए सरकार को मुआवज़े के लिए जवाबदेह ठहराना क़ानूनन सही नहीं है.
देश के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में केवल नौ प्रदेश ऐसे रहे जहां पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक टीके लगे हैं. पूरे देश की बात करें तो टीकाकरण का लिंगानुपात प्रति एक हज़ार पुरुषों पर 954 महिलाएं है.
मेरठ के कैंट बोर्ड की वार्ड छह की सदस्य मंजू गोयल को 20 मार्च को कोविड-19 रोधी टीके की पहली खुराक दी गई थी. इसके बाद वे कोरोना संक्रमित हुईं और उनका निधन हो गया. उनके बेटे ने बताया कि शुक्रवार दोपहर उनके मोबाइल पर टीके की दूसरी खुराक लगने का मैसेज आया और पोर्टल पर प्रमाणपत्र भी जारी किया गया.
कनाडा के संसदीय चुनाव में सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी 2019 में जीती गई सीटों से एक अधिक यानी 158 सीटों पर जीत के कगार पर है. हाउस ऑफ कॉमंस में बहुमत के लिए 170 सीटों पर जीत आवश्यक है, जिससे लिबरल पार्टी 12 सीट दूर है. कंजर्वेटिव पार्टी ने 121 सीटें जीती हैं.
मामला बदायूं ज़िले का है, जहां एक सरकारी कर्मचारी की पत्नी ने दावा किया है कि कोविड-19 का टीका लगवाने के बाद उनके पति दृष्टिहीन हो गए. उनकी याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बदायूं डीएम से कहा है कि वे जांच कर बताएं कि क़ानून के अनुसार इस मामले में मुआवज़ा दिया जा सकता है या नहीं.
बीते दिनों यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों को 18 वर्ष से अधिक आयु समूह के लिए मुफ़्त टीकाकरण शुरू करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने वाले बैनर लगाने कहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने कहा है कि कोरोना वायरस का भारत में पहली बार पाया गया ‘डेल्टा’ स्वरूप अब तक का सबसे संक्रामक प्रकार है. अब यह स्वरूप कम से कम 85 देशों में फैल रहा है. ग़रीब देशों में टीके की अनुपलब्धता इसके प्रसार में सहायक सिद्ध हो रही है और अमीर देश विकासशील देशों को तत्काल टीका नहीं देना चाहते.
केंद्र सरकार ने कहा है कि कोविड-19 के डेल्टा प्लस वैरिएंट के 51 मामले 12 राज्यों में सामने आए हैं और उनमें से सबसे अधिक 22 मामले महाराष्ट्र से आए हैं. सरकार ने ज़ोर दिया कि कोविशील्ड एवं कोवैक्सीन टीके सार्स-सीओवी-2 के अल्फा, बीटा, गामा एवं डेल्टा स्वरूपों के विरूद्ध प्रभावी हैं. वहीं, असम और महाराष्ट्र में डेल्टा स्वरूप से एक-एक मरीज़ की मौत होने की पुष्टि हुई है.
असम सरकार ने अपने सभी विभागीय प्रमुखों को निर्देश दिया कि इस महीने से वेतन जारी करने के पहले फ्रंटलाइन कर्मचारियों के टीकाकरण की स्थिति का पता लगाएं. इसी तरह मध्य प्रदेश के उज्जैन में ज़िला प्रशासन ने कहा है कि यदि सरकारी कर्मचारियों ने टीका नहीं लगवाया तो उन्हें अगले माह से वेतन नहीं मिलेगा.
स्क्रोल डॉट इन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले कुछ दिनों में भाजपा शासित राज्यों द्वारा टीकाकरण की गति को धीमा करना सोमवार को भारत के रिकॉर्ड 86 लाख टीके की खुराक देने का कारण हो सकता है.
भारत में केरल के एक चिकित्सा केंद्र से सात मामले सामने आए हैं, जहां करीब 12 लाख लोगों को एस्ट्राज़ेनेका टीके दिए गए थे. भारत में इस टीके को कोविशील्ड कहा जाता है. ब्रिटेन के नॉटिंघम में इस प्रकार के चार मामले सामने आए हैं. गुलेन-बैरे सिंड्रोम में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपने तंत्रिका तंत्र के एक हिस्से पर हमला करती है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर स्थित तंत्रिकाओं का नेटवर्क है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि महाराष्ट्र, केरल और मध्य प्रदेश में ‘डेल्टा प्लस’ वैरिएंट के लगभग 40 मामले सामने आए हैं. इन राज्यों को सावधानी बढ़ाते हुए जन स्वास्थ्य संबंधी उचित कदम उठाने की सलाह दी गई है. यह स्वरूप भारत के अलावा, अमेरिका, ब्रिटेन, पुर्तगाल, स्विट्जरलैंड, जापान, पोलैंड, नेपाल, चीन और रूस में मिला है.
कोविड टीकाकरण को लेकर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बहुत गहरी खाई है. बिहार के अररिया और पूर्णिया ज़िलों में विभिन्न अफ़वाहों और भ्रामक जानकारियों चलते ग्रामीण टीका नहीं लगवाना चाहते हैं. टीका न लगवाने की अन्य वजहें जागरूकता की कमी, शैक्षणिक-सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के साथ सरकारी अनदेखी भी है.