कांग्रेस अध्यक्ष ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री ने 15-20 पूंजीपतियों के लिए नोटबंदी की थी. यह ग़लती नहीं बल्कि छोटे उद्योगों और छोटे व्यापारियों पर हमला था.
चाहे हीरा-व्यापार का मामला हो या बुनियादी ढांचे की कुछ बड़ी परियोजनाएं, काम करने का तरीका एक ही रहता है- परियोजना की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और बैंकों व करदाताओं का ज़्यादा से ज़्यादा पैसा ऐंठना.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में देने से समस्या ख़त्म हो जाएगी, ऐसा सोचना अज्ञानता के अलावा कुछ नहीं है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.
आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.
पिछली सरकारों में व्यवस्था को अपने फ़ायदे के लिए तोड़ने-मरोड़ने वाले पूंजीपति मोदी सरकार में भी फल-फूल रहे हैं.
सरकारी खजाने को 19,576 करोड़ का लगाया चूना. नजदीकी अधिकारियों को नवाजे गए ऊंचे पद. विदेशी मुद्रा के नाम पर 10,651 करोड़ बाहर ले जाया गया और गुम हो गया.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का दावा, इससे सरकारी खज़ाने को 23,821 करोड़ रुपये का नुकसान होगा.