असम के मटिया में डिटेंशन सेंटर में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा रिपोर्ट पेश की गई थी, जिसकी 'दयनीय स्थिति' पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बहुत दुखद स्थिति है. यहां पानी की आपूर्ति नहीं है, शौचालय नहीं हैं, चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने दो साल से अधिक समय से हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिकों की रिहाई संबंधी एक याचिका पर सुनते हुए असम राज्य क़ानूनी सेवा प्राधिकरण से सवाल किया है कि ऐसे नागरिकों को उनके देश वापस भेजने के लिए भारत सरकार क्या नीति या प्रक्रिया अपनाती है.
कछार ज़िले की दुलुबी बीबी की नागरिकता साल 1997 के विधानसभा चुनाव की वोटर्स लिस्ट में दर्ज नाम के आधार पर संदिग्ध मानी गई थी और 2017 में उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने 'विदेशी' घोषित कर दिया था. वे दो साल डिटेंशन सेंटर में रहीं. अब ट्रिब्यूनल ने उनके द्वारा दिए गए दस्तावेज़ों को सही माना है.
असम के जेल महानिरीक्षक ने बताया कि सिलचर डिटेंशन केंद्र से 87 क़ैदियों के अंतिम समूह को केंद्र के निर्देश पर बने देश के सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर- मटिया ट्रांजिट कैंप ले जाया गया है. अब से राज्य की छह जेलों- कोकराझार, गोआलपाड़ा, तेजपुर, सिलचर, डिब्रूगढ़ और जोरहाट में बने डिटेंशन केंद्र अस्तित्व में नहीं रहेंगे.
असम में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा 'विदेशी' घोषित किए गए और अदालत द्वारा वीज़ा उल्लंघन के दोषी ठहराए गए 45 पुरुष, 21 महिलाएं और दो बच्चों को गोआलपाड़ा में केंद्र के निर्देश पर बने देश के सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर- मटिया ट्रांजिट कैंप में भेजा गया है.
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम एनआरसी की अंतिम सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं थे. इस सूची के प्रकाशन के बाद से ही राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा और राज्य की भाजपा सरकार इस पर सवाल उठाते रहे हैं.
असम में 'विदेशियों' की पहचान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई एनआरसी की अंतिम सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख से अधिक लोग को इस सूची जगह नहीं मिली थी. फाइनल सूची आने के बाद से ही राज्य की भाजपा सरकार इस पर सवाल उठाती रही है.
असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित हुई थी, जिसमें 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए थे. अब एनआरसी समन्वयक हितेश शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में दायर एक हलफ़नामे में कहा है कि वह सप्लीमेंट्री सूची थी और उसमें 4,700 अयोग्य नाम शामिल हैं.
एक महिला को असम के नलबाड़ी ज़िले की विदेशी अधिकरण ने साल 2019 को विदेशी घोषित किया था, उन्होंने अदालत में याचिका दायर कर इसे चुनौती दी थी. मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने एनआरसी के राज्य समन्वयक से एक विस्तृत हलफ़नामा दायर करने का कहा है.
31 अगस्त 2019 को जारी हुई असम एनआरसी की अंतिम सूची में 3.3 करोड़ आवेदनकर्ताओं में से 19 लाख से अधिक लोगों के नाम नहीं आए थे. ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन का कहना है कि एनआरसी से बाहर किए गए 19 लाख लोगों में से कई वास्तविक भारतीय नागरिक हैं.
एनआरसी असम के समन्वयक हितेश देव शर्मा ने सभी उपायुक्तों और नागरिक पंजीयन के जिला पंजीयकों को लिखे पत्र में कहा है कि फाइनल सूची में घोषित विदेशी, डी वोटर्स और विदेशी न्यायाधिकरण में लंबित श्रेणियों के लोगों के नाम हैं और इनकी पहचान कर इन्हें डिलीट किया जाए.
गौहाटी उच्च न्यायालय ने जेलों में डिटेंशन सेंटर चलाने के लिए असम सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे केंद्र बनाने के बारे में दिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों में भी कहा गया है कि इन्हें जेल परिसर के बाहर बनाया जाना चाहिए.
एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशन के एक साल बाद भी इसमें शामिल नहीं हुए लोगों को आगे की कार्रवाई के लिए ज़रूरी रिजेक्शन स्लिप का इंतज़ार है. प्रक्रिया में हुई देरी के लिए तकनीकी गड़बड़ियों से लेकर कोरोना जैसे कई कारण दिए जा रहे हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो वजह केवल यही नहीं है.
असम में विदेशी न्यायाधिकरण के सदस्य केके गुप्ता ने पिछले महीने स्वास्थ्य और वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को लिखे पत्र में कहा था कि कुछ सदस्यों द्वारा कोविड-19 के लिए इकट्ठा किए गए पैसों को दिल्ली में तबलीगी जमात की बैठक में शामिल होने वालों को राहत देने में इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि वे जिहादी और जाहिल हैं.
कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के बाद दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि असम के डिटेंशन सेंटरों में ऐसे 'घोषित विदेशी' जो यहां दो साल का समय गुज़ार चुके हैं, उन्हें मौजूदा हालात के मद्देनज़र सशर्त रिहा किया जाए.