7 फरवरी को संसद में राहुल गांधी के अडानी- मोदी संबधों को लेकर दिए गए भाषण के बाद से कांग्रेस नेताओं के ख़िलाफ़ हुई कार्रवाइयों का एक क्रम नज़र आता है. अब कांग्रेस का कहना है कि सूरत कोर्ट के फैसले का रिश्ता भी राहुल गांधी के उक्त भाषण से है.
वीडियो: 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी को बीते लोकसभा चुनाव की एक रैली में ‘मोदी सरनेम’ वालों संबंधी टिप्पणी को लेकर दो साल की सज़ा सुनाई थी. इसके एक दिन बाद लोकसभा सचिवालय ने बताया कि सज़ा के दिन से राहुल की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई है.
अप्रैल 2007 में इंडिया टुडे में ब्रिटेन में पदस्थ तीन भारतीय राजनयिकों पर लगे आरोपों को लेकर एक लेख प्रकाशित हुआ था. इसे लेकर अरुण पुरी के ख़िलाफ़ दर्ज मानहानि की शिकायत ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेख लिखने वाले पत्रकार के कृत्य के लिए प्रधान संपादक को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
मामला 1994 का है. मुज़फ़्फ़रनगर के तत्कालीन कलेक्टर अनंत कुमार सिंह का एक साक्षात्कार ‘द पायनियर’ और ‘स्वतंत्र भारत’ अख़बार में प्रकाशित हुआ था, जिसमें महिलाओं के साथ बलात्कार के संबंध में उनके हवाले से एक आपत्तिजनक टिप्पणी छापी गई थी. अदालत ने फैसला सुनाने के बाद आरोपियों को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट के तहत रिहा कर दिया.
भाजपा की आर्थिक नीतियों और अडानी समूह के व्यापारिक सौदों पर व्यापक रूप से लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार रवि नायर ने कहा है कि इस संबंध में उन्हें कोई पूर्व समन नहीं दिया गया है और न ही शिकायत की कोई प्रति मिली है. उन्होंने कहा कि उन्हें यह भी नहीं बताया गया है उनकी किस रिपोर्ट या सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर समूह ने उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि का मुक़दमा दायर कराया है.
अर्णब गोस्वामी के समाचार चैनल रिपब्लिक भारत के एक कार्यक्रम में पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश व्यवसायी अनील मुसर्रत को आईएसआई की कठपुतली और भारत में आतंकवाद फैलाने वाला बताया गया था, जिसके ख़िलाफ़ मुसर्रत ने ब्रिटेन की अदालत का रुख़ किया था. अदालत ने रिपब्लिक चैनल को ब्रिटेन में प्रसारित करने वाली कंपनी पर 35 लाख रुपये से अधिक का ज़ुर्माना भी लगाया.
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक मीडिया संस्थान के ख़िलाफ़ दर्ज मानहानि के मुक़दमे की सुनवाई में कहा कि एफआईआर पर आधारित ख़बर पर मानहानि की शिकायत दर्ज कराना रिपोर्टर को चुप कराने और आरोपियों के ख़िलाफ़ छपी ख़बर को जबरन वापस लेने का प्रयास करवाने के अलावा और कुछ नहीं है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सौंपे गए एक संयुक्त पत्र में पत्रकार संगठनों ने मंत्री अनुराग ठाकुर से नए मान्यता दिशानिर्देश रद्द करने की मांग की है. उन्होंने यह भी कहा कि नए दिशानिर्देशों पर सभी हितधारकों के साथ चर्चा होने के बाद ही आवश्यक निर्देश जारी किए जाएं.
द वायर या इसके संपादकों को इस अदालती कार्यवाही के बाबत कोई नोटिस नहीं मिला था, न ही उन्हें किसी अन्य माध्यम से इसकी जानकारी दी गई.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्र सूचना ब्यूरो की ओर से पत्रकारों की मान्यता के लिए जारी नए दिशानिर्देशों पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराते हुए कहा कि ये अस्पष्ट, मनमाने और कठोर निर्देश सरकारी मामलों की आलोचनात्मक और खोजी रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं.
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, भारतीय महिला प्रेस कोर समेत कई पत्रकार संगठनों ने सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्र लिखकर कहा है कि उनके मंत्रालय ने भारतीय प्रेस परिषद के मौजूदा दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए पत्रकारों को मान्यता देने के दिशानिर्देशों में बदलाव के लिए एकतरफा और अनुचित निर्णय लिया है.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी केंद्रीय मीडिया मान्यता संबंधी कुछ दिशानिर्देश चिंता बढ़ाने वाले हैं. नए नियम कहते हैं कि किसी पत्रकार की मान्यता निलंबित या रद्द करने संबंधी निर्णय सरकार द्वारा नामित अधिकारी के विवेक पर निर्भर होगा.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि जब वे जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे तो उन्हें ‘अंबानी’ और ‘आरएसएस से संबद्ध’ एक व्यक्ति की दो फाइलों को मंज़ूरी देने के बदले में 300 करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी, हालांकि उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. जब आरएसएस नेता राम माधव से कहा गया कि वह उस समय जम्मू कश्मीर में थे, तो उन्होंने कहा कि आरएसएस का कोई भी व्यक्ति ऐसा कुछ नहीं करेगा.
जम्मू कश्मीर के पूर्व और वर्तमान में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कथित तौर पर कहा था कि पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती को रोशनी योजना का लाभ मिला था. मुफ़्ती ने एक क़ानूनी नोटिस भेजकर 10 करोड़ रुपये के मुआवजे़ की मांग की हैं. साल 2001 में लागू रोशनी योजना का उद्देश्य राज्य की ज़मीन पर क़ब्ज़ा रखने वाले लोगों को शुल्क के एवज में उसका मालिकाना हक़ देना था. हालांकि हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर
बीते साल मई में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने अपने एक ट्वीट में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर समस्या और राजीव गांधी को सिख दंगों तथा बोफ़ोर्स घोटाले के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था. इस ट्वीट को भाजपा नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने रिट्वीट किया था. इसके विरोध में छत्तीसगढ़ युवा कांग्रेस ने केस दर्ज कराया था.