कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तीन नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए सवाल किया कि सरकार दिल्ली में किलेबंदी क्यों कर रही है? क्या वह किसानों से डरती है? क्या किसान दुश्मन हैं? दिल्ली की सीमाओं पर अवरोधक लगाने और सड़कों पर कील गाड़ने के क़दम की महबूबा मुफ़्ती और मायावती जैसे नेताओं ने भी निंदा की है.
बीते दिनों में दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन का पॉपस्टार रिहाना, पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग जैसी कुछ अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने समर्थन किया है. प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार उनका दर्द नहीं समझ रही है.
वीडियो: 26 जनवरी को कृषि क़ानूनों के विरोध में निकाले गए किसानों के ट्रैक्टर परेड के दौरान राजधानी दिल्ली में हिंसा हो गई थी. इस दौरान उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले के 25 वर्षीय नवरीत सिंह की मौत हो गई थी. मामले के प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि उनकी मौत गोली लगने से हुई, वहीं पुलिस का दावा है कि उनकी मौत ट्रैक्टर पलटने की वजह से हुई.
26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर परेड के दौरान असत्यापित ख़बरें प्रसारित करने के आरोप में कांग्रेस नेता शशि थरूर, वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय और चार अन्य पत्रकारों के ख़िलाफ़ राजद्रोह की धाराओं में मामला दर्ज हुआ है.
स्वतंत्र पत्रकार मंदीप पुनिया को सिंघू बॉर्डर से शनिवार को हिरासत में लेने के बाद रविवार को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था. अदालत ने उन्हें ज़मानत देते हुए कहा कि शिकायतकर्ता, पीड़ित, गवाह सब पुलिसकर्मी हैं. इस बात की संभावना है नहीं कि आरोपी किसी पुलिस अधिकारी को प्रभावित कर सकता है.
डिजिटल मीडिया आज़ाद आवाज़ों की जगह है और इस पर ‘सबसे बड़े जेलर’ की निगाहें हैं. अगर यही अच्छा है तो इस बजट में प्रधानमंत्री जेल बंदी योजना लॉन्च हो, मनरेगा से गांव-गांव जेल बने और बोलने वालों को जेल में डाल दिया जाए. मुनादी की जाए कि जेल बंदी योजना लॉन्च हो गई है, कृपया ख़ामोश रहें.
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार से कहा कि वह किसानों को बताए कि कृषि क़ानूनों को वापस क्यों नहीं लेना चाहती और हम वादा करते हैं कि सरकार का सिर दुनिया के सामने झुकने नहीं देंगे. उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह इन क़ानूनों को निरस्त नहीं करने पर अड़ी हुई है.
स्वतंत्र पत्रकार और कारवां पत्रिका के लिए लिखने वाले मनदीप पुनिया और एक अन्य पत्रकार धर्मेंद्र सिंह को शनिवार को हिरासत में लिया गया था. धर्मेंद्र सिंह को रविवार तड़के रिहा कर दिया गया. वहीं बताया जा रहा है कि पुनिया को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.
गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा मामले में जिन 37 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हुई है, उनमें मेधा पाटकर भी हैं. उन्होंने कहा कि कृषि क़ानून सिर्फ किसानों का मुद्दा नहीं है बल्कि खेती और उससे जुड़ा हर शख़्स इनसे प्रभावित होगा. लोकतंत्र को बचाने के लिए एक साथ खड़े होने की ज़रूरत है.
पिंजरा तोड़ संगठन की सदस्य देवांगना कलीता को दिल्ली दंगा संबंधी मामले में गिरफ़्तार किया गया था. दंगों से संबंधित तीन मामलों में उन्हें ज़मानत मिल चुकी है. कलीता के ख़िलाफ़ गै़रक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज है.
इंडिया टुडे समाचार चैनल के वरिष्ठ एंकर और सलाहकार संपादक राजदीप सरदेसाई के एक महीने का वेतन भी काट दिया गया है. उन्होंने 26 जनवरी को किसानों के ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा में एक प्रदर्शनकारी की मौत पर ट्वीट कर कहा था कि उनकी मौत पुलिस फायरिंग में हुई है. हालांकि पुलिस द्वारा घटना से संबंधित वीडियो जारी करने के बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया था.
आंदोलन का शाब्दिक अर्थ ही यही है कि वह स्थिरता, जड़ता को तोड़ता है. वह कर्णप्रिय हो, आवश्यक नहीं.
जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद आरोप लगाया है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में उनके ख़िलाफ़ विद्वेषपूर्ण मीडिया अभियान चलाया गया. याचिका में दावा किया गया है कि मीडिया रिपोर्टों में उनके एक कथित बयान से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि उन्होंने दंगों में अपनी संलिप्तता कबूल कर ली है. यह निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार के प्रति पूर्वाग्रह है.
समाचार चैनल एनडीटीवी की पूर्व कार्यकारी संपादक निधि राज़दान ने जून 2020 में ट्वीट कर बताया था कि उन्हें अमेरिका स्थित प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एसोसिएट प्रोफ़ेसर की नौकरी का प्रस्ताव मिला है, जिसके बाद उन्होंने पत्रकारिता को अलविदा कह दिया था. ऑनलाइन धोखाधड़ी के इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध शाखा करेगी.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा मामलों में गैर क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) क़ानून के तहत मुकदमे का सामना कर रहे कई आरोपियों ने दावा किया कि आदेश के बावजूद जेल में उन्हें आरोप-पत्र तक पहुंच नहीं दी गई. कुछ आरोपियों ने दावा किया कि इसे पढ़ने के लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया.