राज्यसभा सचिवालय की ओर से जारी बुलेटिन में कहा गया है कि संसद भवन परिसर का इस्तेमाल धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, अनशन या धार्मिक समारोहों के लिए नहीं किया जा सकता. यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है, जब एक दिन पहले ही लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी असंसदीय शब्दों के संकलन को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा था.
साल 2015 में पानी की नियमित सप्लाई की मांग को लेकर कुछ महिलाएं मुंबई में प्रदर्शन कर रही थीं. इन्हें ट्रैफिक रोकने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया था. इनमें से दो वरिष्ठ नागरिक हैं. अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं था.
नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, कोई भी प्रोफेसर संस्थान या सरकार की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता. साथ ही शिकायत निवारण के लिए संयुक्त याचिकाओं पर हस्ताक्षर और किसी भी समस्या के लिए अदालत या प्रेस जाने पर भी अंकुश लगाया गया है. फैकल्टी सदस्यों ने इनका पुरजोर विरोध किया है.
पिछले हफ्ते ह्ययूमन राइट लॉ नेटवर्क, एक्शन एड और नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर द्वारा हरियाणा के पलवल जिले से छत्तीसगढ़ के 44 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया गया, जिनमें पांच गर्भवती महिलाएं और कुछ नाबालिग भी शामिल हैं. 20 फरवरी को इन बंधुआ मजदूरों ने दिल्ली के जंतर-मंतर में अपने पुनर्वास और मुक्ति प्रमाणपत्र के लिए प्रदर्शन किया. उनसे संतोषी मरकाम की बातचीत.