कौन रंक, कौन सर्वहारा, कौन मुफ़लिस, कौन दिवालिया और कौन दरिद्र?

गरीबी आम तौर पर एक ऐसी स्थिति है जिसके शिकार व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पास जीने के लिए आवश्यक बुनियादी चीजें नहीं होतीं, जबकि रंक के साथ गरीबी से पैदा हुई 'कंगाली में आटा गीला' वाली गिरानी से भरी भीषण असहायता भी जुड़ी होती है.

मोदी सरकार ने ब्रिटिश राज से भी अधिक असमान ‘अरबपति राज’ को बढ़ावा दिया: कांग्रेस

द वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब द्वारा प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि भारत के सबसे अमीर 1% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 22.6% हिस्सा है, जो एक सदी से भी अधिक है. जबकि निचली 50% आबादी की हिस्सेदारी 15% है. कांग्रेस ने 'अरबपति राज' को बढ़ावा देने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की है.

यूपी: पत्नी का शव बांस के स​हारे लटकाकर अंतिम संस्कार के लिए जाते पति के वीडियो पर रोष

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर का मामला. अर्थी के पैसे न होने के कारण पीड़ित व्यक्ति पत्नी का शव बांस से लटकाकर अंतिम संस्कार के लिए ले जा रहा था. इसे देखने के बाद स्थानीय लोगों ने उनकी मदद की, जिसके बाद अंतिम संस्कार हो पाया. इस घटना को लेकर विपक्षी राज्य की योगी सरकार की आलोचना की है.

देश की बड़ी आबादी ‘अमृतकाल’ के अमृत से वंचित क्यों है

भारतीय मिथकीय संदर्भों में अमृत-विष की अवधारणा समुद्र मंथन से जुड़ती है, जहां मोहिनीरूपधारी विष्णु ने चालाकी से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया था. आज मोदी सरकार ने आर्थिक संपदा व संसाधनों को प्रभुत्व वर्ग के हाथों में केंद्रित करते हुए मोहिनी की तरह अमृत का पूरा घड़ा ही उनके हाथ में दे दिया है.

न्यायपालिका से टकराव के लिए जानबूझकर हमले किए जा रहे हैं, इसके ख़िलाफ़ खड़े होने की ज़रूरत: खड़गे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि आज हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को सुरक्षित करने की है क्योंकि कुछ लोग हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान पर कभी यक़ीन नहीं किया, कभी इसका सम्मान नहीं किया. आज वही लोग हर एक संवैधानिक संस्थान को कमज़ोर करने में जुटे हुए हैं.

अब देश की जनता को ही सिकुड़ते लोकतंत्र के विरुद्ध खड़ा होना होगा

मोदी सरकार एक ऐसा राज्य स्थापित करने की कोशिश में है जहां जनता सरकार से जवाबदेही न मांगे. नागरिकों के कर्तव्य की सोच को इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ा था. मोदी सरकार बिना आपातकाल की औपचारिक घोषणा के ही अधिकारहीन कर्तव्यपालक जनता गढ़ रही है.

भारत विश्व के सर्वाधिक असमान देशों में, शीर्ष एक प्रतिशत के पास है राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी

विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के मुताबिक़, भारत की शीर्ष 10 फीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा है, जबकि नीचे से 50 फीसदी आबादी की इसमें हिस्सेदारी मात्र 13 फीसदी है.

असमानता दूर करने में सरकारों की विफलता की कीमत चुका रही है दुनिया: ऑक्सफैम

विश्व आर्थिक मंच की दावोस एजेंडा शिखर बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने कहा कि महामारी की आर्थिक मार से उबरने में अरबों लोगों को एक दशक से अधिक का समय लग सकता है, जबकि मार्च 2020 के बाद से सबसे शीर्ष पर सिर्फ़ 10 अरबपतियों का धन आसमान छू लिया है.

भारत बीते 50 सालों की सबसे भयावह मानवीय त्रासदी के दौर में प्रवेश कर चुका है

अब जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं, तब ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि भूख और रोजी-रोटी की समस्या ख़त्म हो गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है.

ग़रीब हमारी चेतना से बहुत पहले निकल चुके हैं, लॉकडाउन ने बस इस छिपे तथ्य को ज़ाहिर किया है

जब सरकार ने दोबारा विमान सेवाएं शुरू कीं, तब एक केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और क्वारंटीन सेंटर में रखने जैसी बातें व्यावहारिक नहीं लगतीं. हैरानी वाली बात है कि जो बात विमान के यात्रियों के लिए व्यावहारिक नहीं लग रही, वो मज़दूरों के लिए अति आवश्यक कैसे बन गई थी.

एक फीसदी के पास 70 फीसदी भारतीयों से चार गुना ज्यादा धन: ऑक्सफैम रिपोर्ट

ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट 'टाइम टू केयर' में कहा कि विश्व के 2153 अरबपतियों के पास विश्व की 60 फीसदी जनसंख्या के मुकाबले ज्यादा संपत्ति है. इसमें कहा गया है कि एक घरेलू कामकाजी महिला को किसी तकनीकी कंपनी के सीईओ के बराबर कमाने में 22 हजार 277 साल लग जाएंगे.

एक साल में देश में 9.62 फीसदी बढ़ गई अमीरों की संपत्ति: रिपोर्ट

कार्वी वेल्थ मैनेजमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, इन अमीरों के पास 2017 में 392 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति थी, जो कि 2018 में 430 लाख करोड़ रुपये हो गई.

उदारीकरण के बाद बनीं आर्थिक नीतियों से ग़रीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती गई

जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.

क्यों देश की राजनीतिक और आर्थिक ताक़त कुछ परिवारों तक सिमटकर रह गई है

क्या अगले आम चुनाव में मोदी सरकार या महागठबंधन में से कोई नेता या दल अपने चुनावी घोषणा-पत्र में यह वादा कर सकता है कि वो देश की आम जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा देने की संवैधानिक जवाबदारी निभाने के लिए 2019 से देश के अरबपतियों और अमीरों पर उचित टैक्स लगाने का काम करेगा?

भारत के 9 अमीरों के पास है 50 फीसदी आबादी के बराबर संपत्ति: रिपोर्ट

ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2018 में देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 39 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि पचास प्रतिशत ग़रीब आबादी की संपत्ति में महज़ 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.