नरेंद्र मोदी के भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ने के दावे में कितनी सच्चाई है?

वीडियो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनियाभर के कई मंचों पर कहते हैं कि भारत सबसे तेज़ बढ़ रही अर्थव्यवस्था है, मगर इसी अर्थव्यवस्था में नागरिकों की प्रति व्यक्ति आमदनी इतनी कम है कि इस मामले में भारत विश्व के 100 मुल्कों में भी नहीं आता.

वर्तमान आर्थिक नीतियों ने किसानों को बेहाल किया है: कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा

वीडियो: कृषि की बात कार्यक्रम के इस एपिसोड में कृषि और खाद्य नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा रबी की फसल और विभिन्न फसलों की गिरती कीमतों की जानकारी दे रहे हैं. इस सीज़न में कई फसलों की पैदावार औसत से अधिक हुई है और इससे इनकी कीमतों में गिरावट आई है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ उजले पहलू हैं, लेकिन साथ में बहुत से काले धब्बे भी हैं: रघुराम राजन

भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गर्वनर ने कहा कि अर्थव्यवस्था के बारे में सबसे बड़ी चिंता मध्यम वर्ग, लघु एवं मझोले क्षेत्र और हमारे बच्चों को लेकर है. ये सारी चीज़ें मांग में कमी के चलते लगने वाले शुरुआती झटकों के बाद केंद्र में आएंगी. सरकार को अपने ख़र्च को सावधानी से तय करने की ज़रूरत है, ताकि राजकोषीय घाटे को बहुत ऊंचाई पर पहुंचने से रोका जा सके.

क्या सरकार बच्चों और महिलाओं को भूखे-कमज़ोर रखकर भारत को आत्मनिर्भर बना सकती है?

लैंसेट के अध्ययन के अनुसार कोविड का मातृत्व मृत्यु और बाल मृत्यु दर पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. इसके अनुसार भारत में छह महीनों में 3 लाख बच्चों की कुपोषण और बीमारियों से 14 हज़ार से अधिक महिलाओं की प्रसव पूर्व या इसके दौरान मृत्यु हो सकती है. हालांकि वित्तमंत्री द्वारा घोषित 20.97 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर पैकेज में कुपोषण और मातृत्व हक़ के लिए एक रुपये का भी आवंटन नहीं किया गया है.

मंदी का असर: पारले कर सकता है 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी

1929 में स्थापित पारले में लगभग एक लाख लोग काम करते हैं. कंपनी के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने कहा कि 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से कंपनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले 5 रुपये के बिस्किट पर असर पड़ा है.

आर्थिक असमानता लोगों को मजबूर कर रही है कि वे बीमार तो हों पर इलाज न करा पाएं

सबसे ग़रीब तबकों में बाल मृत्यु दर और कुपोषण के स्तर को देखते हुए यह समझ लेना होगा कि लोक सेवाओं और अधिकारों के संरक्षण के बिना न तो ग़ैर-बराबरी ख़त्म की जा सकेगी, न ही भुखमरी, कुपोषण और बाल मृत्यु को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा.

उदारीकरण के बाद बनीं आर्थिक नीतियों से ग़रीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती गई

जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.