सोमवार (13 मई) को लोकसभा चुनावों के चौथे चरण के मतदान में 10 राज्यों की 96 सीटों पर वोट डाले गए. इस दौरान चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाले कई वाकये सामने आए.
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद भी चुनाव आयोग की विभिन्न गतिविधियों पर सवाल उठे हैं, जैसे कि चुनाव का लंबा कार्यक्रम और अनंतनाग में स्थगित चुनाव. इसके अलावा, आयोग ने प्रत्येक चरण में मतदान के बाद मतों की संख्या बताने और मीडिया से रूबरू होने की प्रथा भी छोड़ दी है.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 की उपधारा 3 और 3(ए) कहती हैं कि धर्म के आधार पर और धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए वोट के लिए अपील करना भ्रष्ट आचरण है. लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनाव के दौरान संबंधित क़ानून का बार-बार उल्लंघन होते हुए देखा जा रहा है.
हैदराबाद पुलिस ने तेलंगाना कांग्रेस के उपाध्यक्ष निरंजन रेड्डी की एक शिकायत पर मामला दर्ज किया है, जिसमें दावा किया गया था कि एक मई को भारतीय जनता पार्टी के चुनावी मंच पर गृहमंत्री अमित शाह के साथ भाजपा का झंडा थामे कुछ बच्चे नज़र आए थे. बता दें कि चुनाव आयोग ने चुनावी प्रचार में बच्चों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया है.
अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट के लिए मतदान की तारीख 7 मई से बदलकर 25 मई कर दी गई है. निर्वाचन आयोग के इस फैसले को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि यह खानाबदोश गुज्जर-बकरवाल आबादी को मताधिकार से वंचित करने की साज़िश है. यह समुदाय अमूमन मई के अंत तक सालाना प्रवास पर जाता है.
भारतीय निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से केवल मतदान संबंधी डेटा ही गायब नहीं है, बल्कि प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या भी उपलब्ध नहीं है.
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लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के दौरान इनर मणिपुर लोकसभा क्षेत्र में हिंसा और ईवीएम के साथ तोड़-फोड़ की घटनाएं सामने आई थीं. अब चुनाव आयोग ने इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम ज़िलों के 11 मतदान केंद्रों पर 22 अप्रैल को फिर से मतदान कराने के आदेश दिए हैं.
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चुनाव आयोग ने 2 और 3 अप्रैल को एक्स को जारी आदेश में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बताते हुए कुछ पोस्ट्स को हटाने को कहा था. इनमें वाईएसआर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, एन. चंद्रबाबू नायडू और भाजपा नेता व बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के पोस्ट शामिल हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चैनल को दिए साक्षात्कार में दावा किया है कि उनके द्वारा लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना के कारण ही राजनीतिक चंदे के स्रोतों के नाम सामने आए हैं. हालांकि, हक़ीक़त यह है कि मोदी सरकार ने चंदादाताओं के नाम छिपाने के लिए हरसंभव कोशिश की थी.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वीवीपैट और ईवीएम के बारे में विशेषज्ञों द्वारा कई चिंताएं उठाई जा चुकी हैं. पूर्व में ईवीएम और वीवीपैट वोटों की गिनती के बीच कथित विसंगतियों के बीच आवश्यक है कि सभी वीवीपैट पर्चियों की सावधानीपूर्वक गिनती की जाए.
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मौजूदा लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा विपक्षी दलों और नेताओं को निशाना बनाने के बीच तीन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने कहा है कि इस तरह की कार्रवाइयां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में हस्तक्षेप हैं. चुनाव आयोग को एजेंसियों से मिलकर बात करनी चाहिए कि वे चुनाव ख़त्म होने तक इंतज़ार क्यों नहीं कर सकते.