पश्चिम बंगाल के चुनाव के नतीजों की कई व्याख्याएं हो सकती हैं, और होनी भी चाहिए. लेकिन हर व्याख्या की शुरुआत यहीं से करनी होगी कि पश्चिम बंगाल के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की एक नहीं सुनी.
मद्रास हाईकोर्ट ने बीते 26 अप्रैल को निर्वाचन आयोग की आलोचना करते हुए उसे देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए ‘अकेले’ ज़िम्मेदार क़रार दिया था और कहा था कि वह ‘सबसे ग़ैर ज़िम्मेदार संस्था’ है. इन टिप्पणियों को हटाने के लिए आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को रुख़ किया था.
कई सालों से मोदी-शाह की जोड़ी ने चुनाव जीतने की मशीन होने की जो छवि बनाई थी, वह कई हारों के कारण कमज़ोर पड़ रही थी, मगर इस बार की चोट भरने लायक नहीं है. वे एक ऐसे राज्य में लड़खड़ाकर गिरे हैं, जो किसी हिंदीभाषी के मुंह से यह सुनना पसंद नहीं करता कि वे उनके राज्य को कैसे बदलने की योजना रखते हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम के निर्वाचन अधिकारी द्वारा सीईओ कार्यालय को भेजे एक कथित एसएमएस को सार्वजनिक करते हुए दावा किया कि अधिकारी को अपने जीवन का ख़तरा था इसलिए उन्होंने फिर से मतगणना के आदेश नहीं दिए.
बंगाल के समाज के सामूहिक विवेक ने भी उस ख़तरे को पहचाना, जिसका नाम भाजपा है. तृणमूल कांग्रेस की यह जीत इसलिए बंगाल में छिछोरेपन, लफंगेपन, गुंडागर्दी, उग्र और हिंसक बहुसंख्यकवाद की हार भी है.
कोविड प्रबंधन पर मद्रास हाईकोर्ट द्वारा चुनाव आयोग पर की गई टिप्पणियों को लेकर आयोग की याचिका पर शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतंत्र तभी जीवित रहता है जब उसके संस्थानों को मजबूत किया जाता है. हमें सुनिश्चित करना होता है कि जज अपने विचार रखने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र हों. साथ ही अदालत में होने वाली हर बात को मीडिया रिपोर्ट करे ताकि जज गरिमा से अदालती कार्यवाही करें.
नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र के आधिकारिक नतीजे आने से पहले घंटों तक भ्रम की स्थिति रही, क्योंकि मीडिया के एक धड़े में अधिकारी पर ममता की जीत की ख़बर चलने लगी थी. तृणमूल कांग्रेस ने इसके मद्देनज़र मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर दोबारा मतदान कराने की मांग की. हालांकि आयोग ने पार्टी के इस अनुरोध को ख़ारिज कर दिया.
पश्चिम बंगाल की 294, असम की 126, तमिलनाडु की 234, केरल की 140 और पुदुचेरी की 30 सीटों के लिए बीते 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच मतदान हुए थे. केरल में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व में माकपा के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रटिक फ्रंट ने फ़िर से विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है. तमिलनाडु में बीते 10 साल से सत्ता से बाहर रही द्रमुक की वापसी हुई है और केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी में एनआर कांग्रेस के नेतृत्व
निर्वाचन आयोग ने रविवार को कहा कि उसने कई जगहों पर जीत का जश्न मनाने के लिए लोगों के जमा होने को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया है और संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा कि ऐसी स्थिति में प्राथमिकी दर्ज की जाए तथा थाना प्रभारी को निलंबित किया जाए.
पश्चिम बंगाल की 294, असम की 126, तमिलनाडु की 234, केरल की 140 और पुदुचेरी की 30 सीटों पर आज विधानसभा चुनाव परिणाम आएंगे. अधिकारियों ने बताया कि वोटों की गिनती निर्वाचन आयोग के सख्त दिशानिर्देशों के मुताबिक होगी, ताकि कोरोना वायरस के प्रसार को रोका जा सके. इसमें एजेंट के लिए आरटी-पीसीआर की जांच भी शामिल है.
मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए केंद्र की मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों उठाने में कथित तौर पर लापरवाही को लेकर नाराज़गी जताते हुए कहा कि कि वह 14 महीनों से कर क्या रही थी? दो मई को असम, पश्चिम बंगाल, केरल, पुदुचेरी और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में डाले गए मतों की गिनती होनी है.
विधानसभा चुनाव राउंड-अप: पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस की दूसरी लहर आने के बाद दो निवर्तमान विधायकों समेत चुनाव मैदान में उतरे विभिन्न दलों के तीन प्रत्याशियों की मौत हो चुकी है. तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग के हाथ कोविड-19 मरीज़ों के खून से सने हैं, क्योंकि इसके ख़तरे को उन्होंने नज़रअंदाज़ किया.
विधानसभा चुनाव राउंड-अप: कोलकाता हाईकोर्ट ने दो मई को रैलियों और जमावड़े पर निर्वाचन आयोग द्वारा लगाई गई पाबंदी का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया. निर्वाचन आयोग ने पश्चिम बंगाल के मंत्री फ़रहाद हाकिम को कथित रूप से हिंसा भड़काने वाले भाषण देने पर नोटिस जारी किया. बंगाल भाजपा ने तृणमूल से कहा कि कोविड मुद्दे को राजनीति से परे रखा जाए.
मद्रास हाईकोर्ट द्वारा कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल लागू करवाने में चुनाव आयोग की नाकामी की आलोचना के बाद आयोग ने कहा है कि महामारी से जुड़े क़ानूनी प्रावधानों के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन इकाइयों की है और उसने कभी यह भूमिका अपने हाथ में नहीं ली.
कोरोना वायरस संकट के दौर में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि चुनाव के दौरान जनसभाओं और रोडशो पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती, लेकिन निर्वाचन आयोग इस प्रकार की सभाएं करने की अवधि और दिनों की संख्या में काफी हद तक कटौती करने पर गंभीरता से विचार कर सकता है, क्योंकि अब डिजिटल और सोशल मीडिया के ज़रिये प्रचार करने का विकल्प उपलब्ध हैं.