विपक्ष के बिना लोकतंत्र की नदी सूख जाएगी. हर सरकार ग़लती करती है और ग़लतियां होने, उन्हें सुधारने में कोई शर्म नहीं है. पर जिन देशों में एक ही दल और उसके सुप्रीम नेता को ही लोकप्रियता और जनसमर्थन प्राप्त हो और विपक्ष कमज़ोर या ग़ायब हो, वहां इस सरकार और नेता की कोई ग़लती आपदा का रूप ले लेती है.
राहुल गांधी का चीनी घुसपैठ और अडानी विवाद को उठाना भाजपा की सबसे बड़ी ताक़तों- राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार मुक्त छवि- पर चोट करता है. पहली बार है, जब भाजपा ने राहुल के हमलों के जवाब में ‘पप्पू’ कहकर मज़ाक नहीं बनाया. महीनेभर में राहुल को जिस तरह से घेरा गया, वह दिखाता है कि यह बौखलाई हुई है.
डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि कोई भी संविधान बुरा हो सकता है यदि इसे अमल में लाने वाले लोग बुरे हों. उनका कथन इस संदर्भ और प्रासंगिक हो जाता है कि कैसे संवैधानिक अधिकारों को तबाह करने के लिए नौकरशाही और निचली न्यायपालिका के स्तर पर सामान्य क़ानूनों का उपयोग या दुरुपयोग किया जाता है. लोकसभा से राहुल गांधी की सदस्यता जाना इसी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.
यूनाइटेड किंगडम में राहुल गांधी द्वारा मोदी सरकार की आलोचना में कुछ नया नहीं था, सिवाय इसके कि वे विदेशी दर्शकों के सामने बोल रहे थे. संभव है कि यही वजह है कि भाजपा- जो 2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को वैश्विक नेता के तौर पर पेश करना चाहती है- इतनी बौखलाई हुई नज़र आ रही है.
साल 2013 में लखनऊ के एक वकील द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से उस याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा था, जिसमें कहा गया था कि उसे उन राजनीतिक दलों पर रोक लगानी चाहिए, जो जाति और धार्मिक आधार पर सभाएं करते हैं. नई दिल्ली: बीते महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर एक जवाबी हलफनामे में चुनाव आयोग ने गैर-चुनाव अवधि के दौरान अधिकार क्षेत्र की कमी और आदर्श आचार संहिता के बाहर
वीडियो: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अब से मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति एक समिति की सलाह से होगी, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और सीजेआई शामिल होंगे. इस बारे में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का स्वतंत्र तंत्र बनाए जाने की मांग संबंधी याचिकाओं को सुनते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 को कई दशक बीत गए, लेकिन विभिन्न दलों ने इन नियुक्तियों के लिए कोई क़ानून पेश नहीं किया. स्पष्ट है कि सत्ता में मौजूद दलों की एक ग़ुलाम आयोग के माध्यम से सत्ता में बने रहने की अतृप्त इच्छा होगी.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, आठ राष्ट्रीय दलों ने वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 3289.34 करोड़ रुपये की आय प्राप्त होने की घोषणा की है, जिसमें से आधे से अधिक, क़रीब 1,917.12 करोड़ रुपये भाजपा के हिस्से में आए. वित्त वर्ष 2020-21 के मुक़ाबले भाजपा की आय दोगुनी से अधिक हुई है.
चुनाव आयोग के इस फैसले को उद्धव ठाकरे ने ‘लोकतंत्र की हत्या’ क़रार दिया. उन्होंने कहा कि शिंदे गुट ने शिवसेना का चुनाव चिह्न चुरा लिया है. हम लड़ते रहेंगे और उम्मीद नहीं खोएंगे. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने इस घटनाक्रम को ‘ख़तरनाक’ बताया है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, वर्ष 2021-22 के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल 780.774 करोड़ रुपये प्राप्त होने की घोषणा की है. भाजपा द्वारा घोषित चंदा इस अवधि में कांग्रेस, एनसीपी, भाकपा, माकपा, एनपीईपी, तृणमूल कांग्रेस द्वारा घोषित कुल चंदे से तीन गुना से अधिक है.
निर्वाचन आयोग ने मतदान प्रतिशत को 75 प्रतिशत तक ले जाने की चर्चा के बीच उन 30 करोड़ मतदाताओं के मुद्दे को उठाया है, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान करने नहीं पहुंचे. इन 30 करोड़ मतदाताओं में शहरी क्षेत्र के लोग, युवा और प्रवासी शामिल हैं. इस साल एक जनवरी को देश के कुल मतदाताओं की संख्या 94,50,25,694 थी.
बेलागवी के गोकक से भाजपा विधायक और पूर्व जल संसाधन मंत्री रमेश जारकिहोली ने एक रैली में क्षेत्र की एक कांग्रेस विधायक द्वारा जनता में उपहार बांटने का दावा करते हुए कहा कि अगर हम आपको वोट का छह हज़ार रुपये न दें, तो हमारे उम्मीदवार को वोट मत देना.
नगालैंड विधानसभा का कार्यकाल 12 मार्च को समाप्त हो रहा है, वहीं मेघालय और त्रिपुरा की विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमश: 15 और 22 मार्च को समाप्त हो रहा है. तीनों राज्यों की विधानसभाओं में 60-60 सीटें हैं.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि मंत्रिमंडल के फैसले के तहत बिश्वनाथ ज़िले को सोनितपुर में मिला दिया जाएगा, होजई को नगांव, बजाली को बारपेटा में और तमुलपुर को बक्सा ज़िले में मिला दिया जाएगा.
लोकसभा में तीन सदस्यों द्वारा उठाए गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना स्वैच्छिक है और इसे जोड़ने के लिए मतदाता की सहमति प्राप्त करना आवश्यक है.