राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए चुनावी बॉन्ड की छपाई की कुल लागत की जानकारी हासिल करने की ख़ातिर भारतीय सुरक्षा प्रेस को आरटीआई आवेदन दिया था. हालांकि भारतीय सुरक्षा प्रेस ने तर्क दिया था कि सूचना सार्वजनिक किए जाने से देश के आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
एक आरटीआई आवेदन के जवाब में एसबीआई ने बताया कि चुनावी बॉन्ड शुरू होने के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी विधानसभा चुनाव से पहले इतनी बड़ी राशि के बॉन्ड बेचे गए. इस अवधि में बैंक की मुंबई शाखा ने सर्वाधिक 489.6 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे और नई दिल्ली शाखा में सबसे अधिक बॉन्ड भुनाए गए.
चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले संगठन द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 2019-20 में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की संपत्ति और देनदारियों के अपने विश्लेषण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. वित्त वर्ष के दौरान सात राष्ट्रीय और 44 क्षेत्रीय दलों द्वारा घोषित कुल संपत्ति क्रमश: 6,988.57 करोड़ रुपये और 2,129.38 करोड़ रुपये थी.
स्टेट बैंक से प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, पिछले चार वर्षों में लगभग 7,995 करोड़ रुपये के 15,420 चुनावी बॉन्ड बेचे गए. इनमें से 7,974 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 15,274 चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए. 20 करोड़ रुपये से कुछ अधिक मूल्य के नहीं भुनाए गए बॉन्ड प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष भेजे गए.
वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारतीय स्टेट बैंक को एक जनवरी से 10 जनवरी 2022 के बीच उसकी 29 अधिकृत शाखाओं के जरिए चुनावी बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट में कहा है कि वित्त वर्ष 2019-20 में 25 क्षेत्रीय दलों को 803.24 करोड़ रुपये दान मिला, जिसमें 426.23 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड से आए और क्षेत्रीय दलों ने स्वैच्छिक योगदान से 4.97 करोड़ रुपये एकत्र किए, जिसमें से 55.5 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से आया.
भाजपा को साल 2018-19 में 700 करोड़ रुपये से अधिक चंदा मिला और इसका सबसे बड़ा हिस्सा 356 करोड़ रुपये टाटा समूह द्वारा नियंत्रित एक चुनावी ट्रस्ट से आया है.
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, एक मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 के बीच कुल 1,407.09 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए, जबकि एक मार्च से 10 मई 2019 तक कुल 4,444.32 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए.
सूचना के अधिकार कानून के तहत एसबीआई से 2017-2019 के बीच सरकार या आरबीआई द्वारा उसे भेजे गए सभी पत्रों, निर्देशों, अधिसूचनाओं या ईमेल की प्रति मांगी गई थी.
देश के ग़रीब प्रधानमंत्री ने चुनावी ख़र्चे का इतिहास ही बदल दिया है, इसलिए कॉरपोरेट को भी ज्यादा चंदा देना होगा. कॉरपोरेट नहीं बताना चाहते हैं कि वे किसे और कितना चंदा दे रहे हैं. उनकी सुविधा के लिए प्रधानमंत्री ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने का चतुर क़ानून बनाया और बड़ी आसानी से जनता को बेच दिया कि चुनावी प्रक्रिया को क्लीन किया जा रहा है.
अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी का हवाला देकर प्रधानमंत्री मोदी बड़े पूंजीपतियों से अपने करीबी रिश्तों को लेकर हो रही आलोचना को नहीं टाल सकते.
माकपा महासचिव ने चुनावी बॉन्ड को छोटे राजनीतिक दलों के वजूद को ख़तरा बताते हुए कहा कि छोटी पार्टियों को ज़िंदा रखने के लिए चुनावी बॉन्ड के प्रावधानों को हटाना होगा.
चुनावी बॉन्ड जारी करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए माकपा ने याचिका में कहा है कि यह क़दम लोकतंत्र को कमतर करके आंकने वाला है. इससे राजनीतिक भ्रष्टाचार और अधिक बढ़ जाएगा.
मोदी सरकार द्वारा चुनावी बांड की पहल पर कांग्रेस, माकपा और आप ने कहा यह दलों को चंदा देने वालों की जानकारी छुपाने में मददगार साबित होगा.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बीते मंगलवार को राजनीतिक दलों के लिए चुनावी बॉन्ड का ऐलान किया. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि चुनावी बॉन्ड से कॉरपोरेट एवं राजनीतिक दलों के बीच की सांठगांठ को तोड़ने में सफलता भी नहीं मिलेगी.