भाजपा का इमारतों के निर्माण और चुनाव प्रचार का ख़र्च 74,053 करोड़ रुपये से 107,803 करोड़ रुपये के बीच पहुंच सकता है. यह 2014-15 से 2022-23 के बीच पार्टी की घोषित आय 14,663 करोड़ रुपये से पांच से सात गुना अधिक है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक साक्षात्कार में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज की गई चुनावी बॉन्ड योजना चुनावी चंदे में पारदर्शिता लेकर आई थी, इसमें कुछ सुधार की ज़रूरत है, सभी हितधारकों से परामर्श के बाद इसे किसी और रूप में वापस लाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना मामले में बीते वर्ष 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसके दो दिन बाद ही बॉन्ड बिक्री के अगले चरण की घोषणा कर दी गई. सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इसके बाद हुई 29वें और 30वें चरण की बिक्री में क्रमश: 99% और 94% बॉन्ड 1 करोड़ रुपये मूल्यवर्ग वाले बेचे गए.
देश के तीन वामपंथी दलों - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने चुनाव आयोग को बताया कि उन्हें चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कोई पैसा नहीं मिला है.
बिहार में भागलपुर और खगड़िया को जोड़ने वाला निर्माणाधीन पुल पहली बार 30 अप्रैल, 2023 को और फिर 4 जून को दूसरी बार ढह गया था. इसका निर्माण करने वाली कंपनी एसपी सिंगला कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने मई 2019 में एक ही दिन में 75 लाख रुपये के बॉन्ड खरीदे थे.
नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड पर 26 अक्टूबर, 2018 को आयकर छापे पड़े थे. इसके छह महीने बाद इसने 30 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की पहली किश्त खरीदी.
भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनावी बॉन्ड योजना को ‘दुनिया का सबसे बड़ा जबरन वसूली रैकेट’ बताया. वहीं, पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सुप्रीम कोर्ट से सत्तारूढ़ भाजपा के ख़िलाफ़ उच्च स्तरीय जांच और उसके बैंक खातों को फ्रीज़ करने की मांग की.
चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित डेटा 2019 और 2024 के बीच राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कॉरपोरेशन, निजी व्यावसायिक घरानों और व्यक्तियों की सूची तो प्रचंदा करता है, लेकिन यह इस बारे में कोई जानकारी नहीं देता है कि किस राजनीतिक दल ने किस कंपनी द्वारा प्राप्त बॉन्ड को भुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था और भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड का विवरण 6 मार्च तक चुनाव आयोग को जमा करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन बाद में एसबीआई ने 30 जून तक के समय विस्तार की मांग करते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताने वाले अपने फैसले में और भी कई महत्वपूर्ण टिप्पणी कीं, जिनमें से एक में कहा गया कि राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानकारी एक मतदाता को यह आकलन करने में सक्षम बनाएगी कि क्या नीति निर्धारण और वित्तीय योगदान के बीच कोई संबंध है.
2022-2023 में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा कुल 2,800.36 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए. भाजपा की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि पार्टी को उस वर्ष बेचे गए चुनावी बॉन्ड्स की कुल राशि का 46% प्राप्त हुआ.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के एक विश्लेषण के अनुसार, पांच चुनावी ट्रस्टों को वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल 366.49 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जिसमें भाजपा को सबसे अधिक 259.08 करोड़ रुपये का दान प्राप्त हुआ. बीआरएस को 90 करोड़ रुपये और वाईएसआर कांग्रेस, आप तथा कांग्रेस को सामूहिक रूप से कुल 17.40 करोड़ रुपये दान में मिले.
स्टेट बैंक ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना आने के बाद से 29 चरणों में 15,956.3096 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे गए हैं. बताया गया है कि दानदाताओं को बैंक को कोई सेवा शुल्क नहीं देना पड़ता, यहां तक कि बॉन्ड की छपाई लागत का भुगतान भी सरकार या करदाता वहन करते हैं.
एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मिली जानकारी के अनुसार, चुनावी बॉन्ड योजना के तहत नवीनतम बिक्री (29वीं किश्त) में सर्वाधिक बिक्री तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद (359 करोड़ रुपये) में हुई, इसके बाद मुंबई (259.30 करोड़ रुपये) और दिल्ली (182.75 करोड़ रुपये) रहे.
वित्त मंत्रालय ने कहा है कि देशभर में भारतीय स्टेट बैंक की अधिकृत शाखाएं 6 नवंबर से 20 नवंबर के बीच चुनावी बॉन्ड जारी कर सकती हैं. यह घोषणा पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से कुछ हफ्ते पहले आई है.