पहली बार चुनावी बॉन्ड पेश किए जाने के समय आर्थिक मामलों के सचिव रहे पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का कहना है कि भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड की जानकारी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बैंक से चुनाव आयोग को देने के लिए कहा है, उपलब्ध कराने के लिए 'एक दिन से ज़्यादा के समय की ज़रूरत' नहीं है.
एसबीआई ने 5 मार्च को शीर्ष अदालत से राजनीतिक दलों द्वारा खरीदे या भुनाए गए सभी चुनावी बांड्स का विवरण देने के लिए 30 जून तक का समय मांगा था. इसके बाद से सार्वजनिक क्षेत्र के इस सबसे बड़े बैंक की कार्यप्रणाली को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं.
भारतीय स्टेट बैंक द्वारा चुनावी बॉन्ड योजना का विवरण पेश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से 30 जून तक का समय मांगने के बाद सीपीआई महासचिव डी. राजा ने कहा कि इस विवरण का खुलासा करने में एसबीआई की अनिच्छा कुछ और नहीं बल्कि चुनाव से पहले भाजपा सरकार को शर्मिंदगी से बचाने का एक प्रयास है.
वीडियो: सुप्रीम कोर्ट के चुनावी बॉन्ड योजना रद्द करने के बाद स्टेट बैंक ने इसके द्वारा मांगे गए विवरण देने के लिए जून तक की मोहलत मांगी है. इसे लेकर विभिन्न जानकारों ने सवाल उठाए हैं. इसी विषय में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज गोविंद माथुर से बात कर रही हैं द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.
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15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करते समय सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को आदेश दिया था कि वह अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का विवरण 6 मार्च तक दे, जिसे चुनाव आयोग 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट प्रकाशित करेगा.
आंध्र प्रदेश और इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेवाएं दे चुके सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीएसआर वर्मा ने हैदराबाद पुलिस को दी शिकायत में कहा है कि उनके साथ फ्रॉड करने वालों ने दावा किया था कि वे उस धन से चुनावी बॉन्ड खरीदेंगे और बदले में उन्हें और उनके पोते-पोतियों को अमेरिका में अच्छी तरह सेटल करेंगे.
एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मिली जानकारी बताती है कि 29 दिसंबर, 2023 से इस साल 15 फरवरी तक सरकार ने एक करोड़ रुपये मूल्य के 8,350 बॉन्ड छापे थे.
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द वायर और लाइव लॉ के सहयोग से कैंपेन फॉर ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स द्वारा आयोजित एक सेमिनार में वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा कि असहमति को कुचलने के लिए सरकार ने जो सबसे आसान तरीका खोजा है, वह यूएपीए का इस्तेमाल है.
सुप्रीम कोर्ट में पेश किए आंकड़ों के अनुसार, कुल अज्ञात आय - यानी 20,000 रुपये से कम की दान राशि, कूपन की बिक्री आदि - में कमी नहीं देखी गई है. 2014-2015 से 2016-2017 के दौरान यह 2,550 करोड़ रुपये थी, जो 2018-19 से 2021-2022 के दौरान बढ़कर 8,489 करोड़ रुपये हो गई.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताने वाले अपने फैसले में और भी कई महत्वपूर्ण टिप्पणी कीं, जिनमें से एक में कहा गया कि राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानकारी एक मतदाता को यह आकलन करने में सक्षम बनाएगी कि क्या नीति निर्धारण और वित्तीय योगदान के बीच कोई संबंध है.
वीडियो: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बृहस्पतिवार को साल 2018 में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी से बातचीत.
वीडियो: बीते 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया था. इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज से अतुल होवाले की बातचीत.
शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड जारी करने पर भी रोक लगा दी है और एसबीआई से योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण देने के लिए कहा है. चुनावी बॉन्ड योजना 2018 की शुरुआत में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाई गई थी. इसके माध्यम से भारत में कंपनियां और व्यक्ति राजनीतिक दलों को गुमनाम दान दे सकते हैं.