फादर स्टेन स्वामी की हिरासत, ख़ारिज होती ज़मानत, बुनियादी ज़रूरतों के लिए अदालत में अर्ज़ियां लगाना और अंत में अपनों से दूर एक अनजान शहर में उनका गुज़र जाना यह एहसास दिलाता है कि उनके ख़िलाफ़ कोई आरोप तय किए बिना और उन पर कोई मुक़दमा चलाए बगैर उन्हें सज़ा-ए-मौत मुक़र्रर कर दी गई.
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में यूएपीए के तहत पिछले साल गिरफ़्तार किए गए आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की बीते पांच जुलाई को मुंबई के एक अस्पताल में मौत हो गई थी. संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने कहा कि आरोपी के तौर पर हिरासत में उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया.
एनआईए ने एल्गार परिषद मामले में आरोपी मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता सुरेंद्र धावले द्वारा दायर याचिका के जवाब में बॉम्बे हाईकोर्ट में हलफनामा दायर किया है. याचिका में केंद्र सरकार के जनवरी 2020 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसके तहत महाराष्ट्र की पुणे पुलिस से मामले की जांच एनआईए को स्थानांतरित की गई थी.
बीते छह जुलाई को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कार्यकर्ता एवं वकील सुधा भारद्वाज ने अपने वकील के ज़रिये बॉम्बे उच्च न्यायालय को बताया था कि 2018 में उनकी गिरफ़्तारी के बाद जिस न्यायाधीश (अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश) ने उन्हें हिरासत में भेज दिया था, उन्होंने एक विशेष न्यायाधीश होने का ‘दिखावा’ किया था और उनके द्वारा जारी किए गए आदेश के कारण उन्हें और अन्य आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा.
वीडियो: भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन पांच जुलाई को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए अस्पताल में हो गया. उनके प्रियजनों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मौत के लिए पूरी तरह से लापरवाह जेल, उदासीन अदालतें और दुर्भावनापूर्ण जांच एजेंसियां ज़िम्मेदार हैं.
एल्गार परिषद- भीमा कोरेगांव मामले के 10 आरोपियों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि एनआईए और तलोजा जेल के पूर्व अधीक्षक ने स्टेन स्वामी को प्रताड़ित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा चाहे वह जेल में भयावह बर्ताव हो, अस्पताल से उन्हें जेल में लाने की जल्दबाज़ी हो या पानी पीने के लिए सिपर जैसी छोटी सी चीज़ों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो, जिसकी स्वामी को अपने स्वास्थ्य के कारण ज़रूरत होती थी.
अमेरिका के मैसाचुसेट्स की डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग द्वारा की गई जांच रिपोर्ट बताती है कि एल्गार परिषद मामले में हिरासत में लिए गए 16 लोगों में से एक वकील सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर को 16 फरवरी 2016 से हैक किया जा रहा था. दो साल बाद उन्हें छह अप्रैल 2018 को गिरफ़्तार किया गया था.
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की मानवाधिकार संस्था द्वारा आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत पर भारत सरकार की आलोचना करने के बाद विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि देश मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद हिरासत में लिया था.
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज का कहना है कि एक न्यायाधीश विशेष जज होने का ‘दिखावा’ किया था और उनके द्वारा जारी आदेश के कारण उन्हें और अन्य आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उक्त न्यायाधीश की नियुक्ति, पद आदि पर मूल रिकॉर्ड पीठ के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया है.
एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग की मां का पिछले साल 15 अगस्त को निधन हो गया था. एल्गार परिषद मामले में गाडलिंग जैसे गिरफ़्तार आरोपियों को अपनी मां के अंतिम संस्कार जैसे महत्वपूर्ण मामलों में भी अस्थायी ज़मानत मुश्किल से मिल रही है. स्टेन स्वामी को भी उनके ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद मेडिकल ज़मानत नहीं दी गई थी. बीते पांच जुलाई को उनका निधन हो गया.
भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन बीते सोमवार को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए अस्पताल में हो गया. आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी के प्रियजनों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मौत के लिए पूरी तरह से लापरवाह जेल, उदासीन अदालतें और दुर्भावनापूर्ण जांच एजेंसियां ज़िम्मेदार हैं.
विपक्ष ने 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के गुज़रने को ‘हिरासत में हत्या’ बताते हुए कहा है कि वे इस मामले को संसद में उठाएंगे और ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग करेंगे. वाम दलों ने स्वामी की मौत के लिए जवाबदेही तय करने की मांग की है.
एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की हालत कई दिनों से नाज़ुक बनी हुई थी और वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे. उनके क़रीबियों ने तलोजा जेल पर आरोप लगाया है कि स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलने के कारण स्वामी की स्थिति बदतर हुई थी.
कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की पत्नी और वर्नोन गोन्जाल्विस की पत्नी ने जेल अधिकारियों द्वारा उनके ख़िलाफ़ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख़ किया है. उनका आरोप है कि तलोजा जेल अधीक्षक ने एकतरफ़ा और तानाशाही रुख़ अपनाते हुए प्रो. तेलतुम्बड़े और एल्गार परिषद मामले में सभी आरोपियों पर प्रतिबंध लगा दिया. इन सभी कार्यकर्ताओं द्वारा अपने परिवार के सदस्यों और वकीलों को लिखे गए पत्र रोक दिए गए हैं.
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को अदालत के आदेश पर बीते 28 मई को नवी मुंबई की तलोजा जेल से अस्पताल में भर्ती कराया गया था. चिकित्सा आधार पर अंतरिम ज़मानत के लिए इस साल की शुरुआत में दायर याचिका में 84 वर्षीय स्वामी ने दावा किया था कि वह पार्किंसन सहित कई बीमारियों से ग्रस्त हैं.