ग्राउंड रिपोर्ट: तीन नदियों से घिरे मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के औराई विधानसभा क्षेत्र के कई गांव आज भी आवागमन के लिए ग्रामीणों द्वारा चंदा इकठ्ठा करके बनाए गए बांस-बल्ली के अस्थायी पुलों पर निर्भर हैं. ग्रामीण बताते हैं कि कई बार इस बारे में नेताओं से मिले, पर आज तक उनके आश्वासन का कोई नतीजा नहीं निकला.
ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी-बिहार सीमा पर पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र के गंडक नदी के किनारे बसे आखिरी धूमनगर गांव के कुछ टोले केवल नावों के सहारे जुड़े हैं. ग्रामीणों का कहना है कि लंबे समय से पुल बनाने की मांग उठने के बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई सुनवाई नहीं है.
ग्राउंड रिपोर्ट: आज़ादी के बाद कोसी की बाढ़ से राहत दिलाने के नाम पर इसे दो पाटों में क़ैद किया गया था और अब लगातार बनते तटबंधों ने नदी को कई पाटों में बंद कर दिया है. इस बीच सुपौल, सहरसा, मधुबनी ज़िलों के नदी के कटान में आने वाले गांव तटबंध के लाभार्थी और तटबंध के पीड़ितों की श्रेणी में बंट चुके हैं.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के सुपौल ज़िले के निर्मली विधानसभा क्षेत्र में कोसी नदी के सिकरहट्टा-मंझारी तटबंध पर बसे पिपराही गांव से गुज़र रही धारा में कम पानी होता था, पर बीते कई सालों से बारह महीने इतना पानी रहता है कि बिना नाव के पार नहीं किया जा सकता है. इस साल मई से सितंबर के बीच यहां पांच बार बाढ़ आ चुकी है.
ग्राउंड रिपोर्ट: पश्चिम चंपारण ज़िले के लक्ष्मीपुर रमपुरवा गांव के सीमाई पांच टोले के पांच सौ से अधिक ग्रामीण गंडक नदी की बाढ़ और कटान से हुई व्यापक तबाही के बाद फिर से ज़िंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में लगे हैं. अस्तित्व के संकट जूझ रहे इन टोलों में चुनावी कोलाहल की गूंज नहीं पहुंची है.
लोकसभा में सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि वर्ष 2019-20 में पूरे देश के 114.295 लाख हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई, जिसमें बिहार में बाढ़ से प्रभावित कुल फसल 2.61 लाख हेक्टेयर थी.
विशेष रिपोर्ट: कोसी योजना को अमल में लाए छह दशक से अधिक समय हो चुका है. सरकारी दस्तावेज़ों में योजना के फ़ायदे गुलाबी हर्फ़ में दर्ज हैं लेकिन बुनियादी सुविधाओं से वंचित कोसीवासियों की पीड़ा बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के नाम पर लाई गई एक योजना की त्रासदी को सामने लाती है.
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की जनता से व्यापक विमर्श नहीं किया जाता. क्योंकि जब उनसे बात होगी तो वे बाढ़ नियंत्रण से जुड़े भ्रष्टाचार की शिकायतें भी करेंगे. अपनी उपेक्षा और दुख-दर्द भी विस्तार से बताएंगे लेकिन सरकारें ये नहीं सुनना चाहतीं.