जम्मू-कश्मीर चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशियों के चलते तीसरे मोर्चे के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन परिणाम उलटे रहे और भाजपा के 'प्रॉक्सी' बताए जा रहे इनमें से कई उम्मीदवारों के लिए ज़मानत बचाना भी मुश्किल हो गया.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में परंपरागत राजनीतिक दल- पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस आदि ही निर्दलीय प्रत्याशियों समेत छोटे क्षेत्रीय दलों को भाजपा का 'प्रॉक्सी' और 'बी' टीम बता रहे थे. हाल यह है कि अब स्वतंत्र प्रत्याशियों को समर्थन देने वाले जमात-ए-इस्लामी ने भी यही दावे दोहराए हैं.
वीडियो: जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को बदलाव की बयार के तौर पर देखा जा रहा है, पर क्या इनसे सूबे के हालात में कोई परिवर्तन होगा? इस बारे में द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज और न्यूज़लॉन्ड्री की मैनेजिंग एडिटर मनीषा पांडे के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.
कश्मीर विधानसभा चुनाव में जमात-ए-इस्लामी के प्रवेश ने नए असमंजस पैदा कर दिए हैं.
विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के महज़ दो दिन पहले सांसद इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है. एआईपी दक्षिण कश्मीर के पुलवामा और कुलगाम में जमात के उम्मीदवारों का समर्थन करेगी, वहीं जमात पूरे कश्मीर में एआईपी के उम्मीदवारों को समर्थन देगी.
जम्मू कश्मीर में जमात-ए-इस्लामी अचानक चुनावी मैदान में कूद पड़ा है. वर्ष 1987 के विधानसभा चुनावों के बाद इसने कभी चुनावों में भाग नहीं लिया था. इसलिए यह कोई मामूली बात नहीं है.
जम्मू-कश्मीर में एक दशक बाद हो रहे विधानसभा चुनाव से पहले जेल से लोकसभा चुनाव जीतने वाले इंजीनियर राशिद को ज़मानत मिलने से ऐसे क़यासों को हवा मिल रही है कि राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की प्रॉक्सी है.