रघुवीर सहाय: कुछ न कुछ होगा, अगर मैं बोलूंगा…

जन्मदिन विशेष: रघुवीर सहाय की कविता राजनीतिक स्वर लिए हुए वहां जाती है, जहां वे स्वतंत्रता के स्वप्नों के रोज़ टूटते जाने का दंश दिखलाते हैं. पर लोकतंत्र में आस्था रखने वाला कवि यह मानता है कि सरकार जैसी भी हो, अकेला कारगर साधन भीड़ के हाथ में है.

केरल हाईकोर्ट ने पूछा- सिर्फ लड़कियों, महिलाओं के रात में बाहर निकलने पर पाबंदी क्यों

केरल हाईकोर्ट 2019 के उस सरकारी आदेश के ख़िलाफ़ याचिका सुन रहा है, जिसमें रात 9.30 बजे के बाद उच्च शिक्षण संस्थानों के हॉस्टल की लड़कियों के बाहर निकलने पर पाबंदी लगाई गई है. कोर्ट ने कहा कि सरकार का दायित्व कैंपस को सुरक्षित रखना है. समस्याएं पुरुष पैदा करते हैं तो उन्हें बंद किया जाना चाहिए.

सवाल कविता कृष्णन पर नहीं, सीपीआई माले पर है

कविता कृष्णन के सवालों पर चुप्पी साधते हुए सीपीआई माले के उन्हें विदा करने के बाद बहुत सारे पुराने, निष्क्रिय ‘मार्क्सवादियों’ ने इस बात के लिए दोनों की तारीफ़ की कि उन्होंने अलग होने में ‘शालीनता दिखाई.’ ज़रूरी सवालों पर चुप रह जाना शालीनता नहीं होती, बल्कि उठाए गए सवालों पर सहमति होती है.

क्या अब अभद्रता पद और सत्ता के लिए ज़रूरी हो चली है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारा समय दुर्भाग्य से ऐसा हो गया है कि राजनेता किसी को कुछ भी कह सकते हैं, अभद्रता और अज्ञान से. उनके अनुयायियों की भावनाएं इस अभद्रता से आहत नहीं होतीं.

समाज में समानता लाने के लिए अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा देने की ज़रूरत: केंद्रीय मंत्री अठावले

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने ओडिशा में जातिगत अत्याचारों में आई कमी को अंतरजातीय विवाहों की संख्या में हुई वृद्धि से जोड़ते हुए कहा है कि ऐसे विवाहों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है.

भारतीय आप्रवासियों के रास्ते क्या जातिगत भेदभाव विदेशों में भी पैठ बना रहा है

गूगल न्यूज़ में दलित अधिकार कार्यकर्ता थेनमोजी सौंदरराजन का जाति के मुद्दे पर होने वाला लेक्चर रद्द कर दिया गया. ख़बर आई कि भारतीय मूल के कथित ऊंची जाति से आने वाले कुछ कर्मचारियों ने सौंदरराजन को 'हिंदू-विरोधी' बताते हुए ईमेल्स भेजे थे.

न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी कम, शीर्ष अदालत में 1950 से सिर्फ़ 11 महिला जज: जस्टिस बनर्जी

पहले ‘अंतराष्ट्रीय महिला न्यायाधीश दिवस’ के कार्यक्रम में जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की संख्या बढ़ने के बावजूद निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है. कार्यक्रम में जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि उच्च न्यायालयों के 680 न्यायाधीशों में 83 महिला न्यायाधीशों का होना बहुत कम संख्या है और निचली अदालतों में क़रीब 30 प्रतिशत महिला न्यायिक अधिकारी हैं.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने क़ानूनी शिक्षा में लड़कियों के लिए आरक्षण की हिमायत की

पहले अंतराष्ट्रीय महिला न्यायाधीश दिवस के उपलक्ष्य में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि वर्तमान में शीर्ष अदालत में चार महिला न्यायाधीश हैं, जो इसके इतिहास में अब तक की सबसे अधिक संख्या है और निकट भविष्य में भारत पहली महिला प्रधान न्यायाधीश का गवाह बनेगा.

सरकारी नीति के ख़िलाफ़ दिया गया कोई भाषण राजद्रोह नहीं हो सकता: जस्टिस नागेश्वर राव

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एल. नागेश्वर राव ने कहा कि सरकार का कर्तव्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देश के सभी नागरिकों को सुनिश्चित करना है और शीर्ष अदालत नागरिकों को याद दिलाती है कि कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक अधिकारों के बारे में जब तक सार्वजनिक चर्चा नहीं होगी और जागरूकता नहीं आएगी, तब तक लोकतंत्र नहीं आएगा.

एससी-एसटी क़ानून सही अर्थों में लागू होने तक जाति आधारित भेदभाव से मुक्ति नहीं मिल सकती: कोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक प्राथमिकी को शिकायतकर्ता और आरोपियों के बीच हुए समझौते के आधार पर रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि जब तक इस क़ानून को इसकी वास्तविक भावना में लागू नहीं किया जाता तब तक जाति आधारित भेदभाव से रहित समाज का सपना दूर की कौड़ी बना रहेगा.

आर्थिक स्थिति के आधार पर मौलिक अधिकारों तक पहुंच से वंचित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट जज

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रवींद्र भट्ट ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी ज़िम्मेदारी भी है. उनकी सहायक भूमिका के अभाव में आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज़्यादातर लोगों को जाति, ग़रीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है.

बाबा साहेब के सपनों को साकार करने के लिए जातिवादी व्यवस्था के विरुद्ध मुहिम तेज़ करनी होगी

कोई भी राजनीतिक दल जाति व्यवस्था के अंत का बीड़ा नहीं उठाना चाहता है, न ही कोई सामाजिक आंदोलन इस दिशा में अग्रसर है. बल्कि, जाति आधारित संघों का विस्तार तेज़ी से हो रहा है. यह राष्ट्र एवं समाज के लिए एक घातक संकेत है.

क्यों हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के ख़िलाफ़ थे आंबेडकर?

वीडियो: बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों और उनकी कल्पना के समाज के विषय पर प्रोफेसर इरफ़ान हबीब और असिस्टेंट प्रोफेसर लक्ष्मण यादव से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

बंधुत्व के बिना स्वतंत्रता और समानता हासिल करना असंभव है

जाति एक ऐसी बाधा है जो एक समाज का निर्माण नहीं होने देती. राष्ट्र बनकर भी नहीं बन पाता क्योंकि हम एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी नहीं होते. एकजुटता या बंधुत्व के अभाव में सामाजिक संपदा का निर्माण भी नहीं हो पाता.

हमारा संविधान: क्या है अनुच्छेद 14 और क्या कहता है समानता का अधिकार

वीडियो: हमारा संविधान की इस कड़ी में लोकतंत्र के ढांचे के सबसे महत्वपूर्ण मील के पत्थर- समानता के अधिकार और इससे जुड़ी बारीकियों के बारे में बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.