मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जयपुर में जाट समाज के एक कार्यक्रम को में एमएसपी क़ानून लाने का समर्थन करते हुए कहा कि धरना ख़त्म हुआ है, आंदोलन नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल के बतौर उनके कार्यकाल के चार महीने बाकी हैं, जिसके बाद वे किसानों के लिए काम करेंगे.
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में सोमवार को एक कार्यक्रम के दौरान कुछ अराजक तत्वों ने भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत पर स्याही फेंक दी थी. पुलिस ने इस सिलसिले में तीन लोगों को गिरफ़्तार किया है. टिकैत ने इस घटना के लिए पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया है कि उन पर हमला भाजपा नीत राज्य सरकार की मिलीभगत से किया गया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा के चार आरोपियों की ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक व्यक्तियों को ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए, क्योंकि उन्हें अपनी स्थिति और उच्च पद की गरिमा के अनुरूप आचरण करने की आवश्यकता होती है. हिंसा से पहले कृषि क़ानूनों को ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ ने दो मिनट में ठीक कर देने की चेतावनी दी थी.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि किसानों ने केवल दिल्ली में अपना धरना समाप्त किया है, लेकिन तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ उनका आंदोलन अभी भी जीवित है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि देश में जिस रफ़्तार से बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ रही है उससे देश में संकट खड़ा होने वाला है.
साल 2015 में पानी की नियमित सप्लाई की मांग को लेकर कुछ महिलाएं मुंबई में प्रदर्शन कर रही थीं. इन्हें ट्रैफिक रोकने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया था. इनमें से दो वरिष्ठ नागरिक हैं. अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं था.
पिछले साल तीन अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के तिकुनिया गांव में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दी गई ज़मानत 18 अप्रैल को को रद्द कर दी थी और उन्हें एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा था.
पिछले साल तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी ज़िले के तिकुनिया गांव में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे आशीष मिश्रा को नौ अक्टूबर 2021 को गिरफ़्तार किया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते 10 फरवरी को उन्हें ज़मानत दे दी थी.
वीडियो: न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसान आंदोलन के भविष्य को लेकर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैट से द वायर के इंद्र शेखर सिंह की बातचीत.
किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने आशीष मिश्रा की ज़मानत रद्द करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच रिपोर्ट की अनदेखी की और आरोपी को राहत देने के लिए केवल एफ़आईआर पर ग़ौर किया.
केंद्र द्वारा निरस्त किए गए तीन कृषि क़ानूनों पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था. बीते साल सौंपी गई उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई थी. अब समिति के एक सदस्य अनिल घानवत ने इसे जारी करते हुए कहा कि 85.7 प्रतिशत किसान संगठन क़ानूनों के समर्थन में थे.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां किसान आंदोलन का असर दिखा था, वहां के 19 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा सिर्फ़ छह सीटें हासिल कर पाई है. अगर इस चुनावी नतीजे से किसी एक निष्कर्ष पर पहुंचा जाए तो वह यह है कि जनता के मुद्दों पर चला सच्चा जन आंदोलन ही ध्रुवीकरण के रुझानों को पलट सकता है और आगे चलकर यही भाजपा को पराजित कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट हिंसा के कुछ पीड़ितों के रिश्तेदार की याचिका पर सुनवाई कर कर रहा था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि आशीष मिश्रा को ज़मानत दिए जाने के बाद मामले में एक गवाह पर हमला हुआ था. अदालत ने प्रमुख गवाहों में से एक पर हुए हमले पर गौर करते हुए यूपी सरकार से गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है.
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक चले प्रदर्शनों की सफलता को देखते हुए कुछ किसान संगठन राजनीति में उतरे थे, लेकिन किसान नेता बलबीर सिह राजेवाल की अगुवाई वाला ‘संयुक्त समाज मोर्चा’ पंजाब में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सका. वहीं पिछले साल किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा बाद भी ज़िले की आठों सीटें भाजपा के खाते में गई हैं.
लखीमपुर खीरी हिंसा के दौरान चार किसानों की हत्या के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को 10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इस बीच बृहस्पतिवार रात मामले के प्रमुख गवाहों में से एक पर हमला भी किया गया.
यूपी में बीते कुछ चुनावों से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला ही राजनीतिक दलों की सफलता का आधार बना है. वर्तमान चुनाव में समाजवादी पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग चर्चा में है. हालांकि जानकारों के अनुसार, पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों के दो अलग-अलग सपा गठबंधनों की विफलता के चलते इस बार के गठबंधन की कामयाबी को लेकर कोई सटीक दावा नहीं किया जा सकता.