केंद्र सरकार के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का आंदोलन पिछले साल 26-27 नवंबर को ‘दिल्ली चलो’ कार्यक्रम के साथ शुरू हुआ था. इन क़ानूनों को सरकार ने वैसे तो वापस ले लिया है, लेकिन किसानों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा.
वीडियो: द वायर ने कृषि क़ानूनों को वापस लेने के बाद मुख्यधारा के मीडिया के यू-टर्न पर दिल्ली की टिकरी सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों से बात की. किसानों का कहना है कि जिस मीडिया ने उन्हें आतंकवादी, खालिस्तानी, देशद्रोही कहा, उन्हें उनका सामना करना पड़ेगा.
वीडियो: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बीते हुई संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन जारी रखने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि अभी भी कई मुद्दे हैं, जिनके समाधान के बाद ही आंदोलन समाप्त होगा.
वीडियो: किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां का कहना है कि जब तक एमएसपी क़ानून पूरी तरह से लागू नहीं हो जाता तब तक किसानों की मांगें पूरा नहीं हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि एमएसपी की गारंटी मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने संबंधी विधेयक को बुधवार को मंज़ूरी दे दी, जिसे 29 नवंबर को शुरू हो रहे संसद सत्र के दौरान लोकसभा में पारित करने के लिए पेश किया जाएगा. किसान नेताओं ने इसे ‘औपचारिकता’ क़रार देते हुए अन्य मांगों, विशेषकर कृषि उपजों के लिए एमएसपी की क़ानूनी गारंटी को पूरा करने की मांग की है.
वीडियो: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को वहां की महिला किसानों की मांगों पर ध्यान देना चाहिए. लखनऊ की किसान महापंचायत में शामिल ये महिला किसान अपनी मांगों और आंदोलन में अपने योगदान की जानकारी दे रही हैं.
न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्डस अथॉरिटी (एनबीडीएसए) का कहना है कि समाचार चैनल ज़ी न्यूज़ ने किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग के दौरान एथिक्स कोड का उल्लंघन किया है. संगठन का कहना है कि चैनल द्वारा प्रसारित तीन वीडियो में कृषि क़ानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को खालिस्तानियों से जोड़ा गया और ग़लत रिपोर्ट की कि 26 जनवरी 2021 को लाल क़िले से भारतीय झंडे को हटा दिया था.
वीडियो: बीते 22 नवंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ईको गार्डन में किसान महापंचायत हुआ, जिसमें देश के कोने-कोने से किसानों ने हिस्सा लिया. इस दौरान संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ़ कर दिया कि किसानों का आंदोलन जारी रहेगा.
तीनों कृषि क़ानूनों को इसलिए निरस्त नहीं किया गया क्योंकि प्रधानमंत्री 'कुछ किसानों को विश्वास दिलाने में विफल' रहे, बल्कि उन्हें इसलिए वापस लिया गया क्योंकि कई किसान दृढ़ता से खड़े रहे, जबकि कायर मीडिया उनके ख़िलाफ़ माहौल बनाकर उनके संघर्ष और ताक़त को कम आंकता रहा.
कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों में से एक अनिल घानवत ने यह भी कहा कि कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी गारंटी बनाने और एमएसपी पर सभी कृषि फसलों की खरीद सुनिश्चित करने की किसानों की मांग ‘असंभव है और लागू करने योग्य नहीं है.’
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे 40 यूनियनों के प्रधान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा की मांगों में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को पद से हटाना और गिरफ़्तारी भी शामिल है, जिनका बेटा गत तीन अक्टूबर को हुई लखीमपुर खीरी हिंसा का आरोपी है. उक्त घटना में कई किसान मारे गए थे. मोर्चा ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है.
संसद द्वारा तीन कृषि क़ानून निरस्त करने से किसानों की कोई मांग पूरी नहीं होगी- वे बस वहीं पहुंच जाएंगे, जहां वे यह क़ानून बनाए जाने से पहले थे.
वीडियो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि क़ानून वापस लेने के निर्णय की घोषणा के बाद दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर मौजूद ख़ुश तो नज़र आए लेकिन यह जीत और हार का मिलाजुला भाव था. किसानों ने कहा कि उन्होंने आंदोलन के दौरान बहुत कुछ खोया है. इन किसानों से बातचीत.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि क़ानून वापस लेने की घोषणा के बाद भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने कहा है कि बिल तो बनते-बिगड़ते रहते हैं, बिल वापस आ जाएगा. इसी तरह राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने भी कहा है कि ज़रूरत पड़ने पर कृषि क़ानूनों को फिर से लाया जा सकता है.
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के तय कार्यक्रम के अनुसार 22 नवंबर को लखनऊ में किसान पंचायत, 26 नवंबर को दिल्ली सभी सीमाओं पर सभा और 29 नवंबर को संसद तक मार्च होगा.