सरकार जीएम बीजों के उपयोग को प्रोत्साहित कर रही है. लेकिन इन बीजों का दीर्घकालिक उपयोग किसानों को और अधिक निर्भर बना सकता है.
सरकारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि खरीफ 2020-21 सीजन में सरकार ने 51.91 लाख टन दालें एवं तिलहन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें से महज 3.08 लाख टन खरीद हुई है. इसके लिए 10.60 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन 1.67 लाख को ही लाभ मिला है.
विशेष रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में धान की ख़रीद शुरू होने पर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि किसी भी किसान को एमएसपी से कम मूल्य पर अपने कृषि उत्पादन नहीं बेचना है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुकाबले प्रदेश की मंडियों में एमएसपी से कम पर बिक्री तो हो ही रही है, सरकारी ख़रीद भी काफी कम है. रफ़्तार इतनी धीमी है कि ख़रीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं ख़रीद पा रहे हैं.
विशेष रिपोर्ट: बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि मंत्रालय के पोर्टल से मिले आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि अक्टूबर-नवंबर में एमएसपी से कम दाम पर कृषि उपजों की बिक्री से किसानों को क़रीब 1,881 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की है.
एक्सक्लूसिव रिपोर्ट: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कृषि क़ानूनों का समर्थन करते हुए कहा है कि उनकी सरकार ने 2006 में एपीएमसी एक्ट ख़त्म कर दिया, जिसका बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिला. हालांकि आधिकारिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि बिहार के कृषि मंत्रालय ने केंद्र को पत्र लिखकर बताया था कि उनके यहां न तो पर्याप्त गोदाम हैं और न ही अनाज ख़रीदने की अच्छी व्यवस्था.
विशेष रिपोर्ट: सितंबर में विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों के बीच मोदी सरकार ने छह रबी फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करते हुए इसे ऐतिहासिक कहा था. हालांकि आधिकारिक दस्तावेज़ बताते हैं कि भाजपा शासित राज्यों समेत कई राज्य सरकारों ने इसे मामूली वृद्धि बताते हुए इसका विरोध किया था.
विशेष रिपोर्ट: ख़रीफ फसलों के लिए केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी और इस बारे में राज्यों के प्रस्ताव में बड़ा अंतर है. द वायर द्वारा प्राप्त आधिकारिक दस्तावेज़ दिखाते हैं कि भाजपा शासित राज्यों समेत विभिन्न राज्य सरकारों ने केंद्र से बढ़ी उत्पादन लागत के हिसाब से एमएसपी घोषित करने की मांग की थी, जिसे माना नहीं गया.
विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों कृषि विधेयकों के देशव्यापी विरोध के बीच मोदी सरकार ने रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की और इसे 'ऐतिहासिक' कहते हुए किसानों को लाभ होने दावा किया. हालांकि राज्यों द्वारा भेजी गई उत्पादन लागत रिपोर्ट बताती है कि यह एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी कम है.
इस बार बिहार सरकार द्वारा किसानों से सात लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इसकी तुलना में सरकार ने महज़ 0.71 फीसदी गेहूं खरीदा है.
विपक्षी दलों के सदन में हंगामे और किसानों के प्रदर्शन के बीच तीनों विवादित कृषि विधेयकों को राज्यसभा से मंज़ूरी मिल गई है. शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने गेहूं के एमएसपी में सिर्फ़ 50 रुपये की वृद्धि पर कहा कि इससे तो डीज़ल समेत अन्य लागत के बढ़े हुए दाम की भरपाई भी नहीं हो पाएगी.
केंद्र सरकार ने कहा है कि घरेलू बाज़ार में प्याज की उपलब्धता बढ़ाने और कीमत पर लगाम लगाने के उद्देश्य से ये फैसला लिया है. हालांकि किसानों का कहना है कि निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से कीमतों में गिरावट आ रही है, जिससे उन्हें घाटा होगा.
साल 2018 के मुकाबले किसानों की आत्महत्या में मामूली गिरावट आई है, जबकि दिहाड़ी कामगारों की आत्महत्या में आठ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार कुल 55 लाख टन गेहूं ख़रीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन राज्य सरकार इसमें से 35.76 लाख टन ही गेहूं ख़रीद पाई है, जो कि लक्ष्य की तुलना में लगभग 20 लाख टन कम है.
केंद्र सरकार सभी राज्यों की फ़सल लागत का औसत मूल्य के आधार पर एमएसपी तय करती है. इसके कारण कुछ राज्यों के किसानों को तो ठीक-ठाक दाम मिल जाता है लेकिन कई सारे राज्यों के किसानों को फ़सल लागत के बराबर भी एमएसपी नहीं मिलती है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि एमएसपी में वृद्धि से किसानों को लागत पर 50 प्रतिशत लाभ सुनिश्चित होगा. लेकिन तोमर ने ये नहीं बताया कि उनका दावा फसलों की कम लागत के आधार पर किए गए आकलन पर आधारित है.