उत्तरी सिक्किम स्थित ल्होनक झील पर अचानक बादल फटने से लाचेन घाटी में तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आ गई है. अधिकारियों ने बताया कि मंगलवार रात करीब 1:30 बजे शुरू हुई बाढ़ चुंगथांग बांध से पानी छोड़े जाने के कारण और बदतर हो गई. इस आपदा में मंगन, पाकयोंग और गंगटोक ज़िले गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
मानसून के दौरान पहाड़ों पर साल दर साल आने वाली त्रासदी पहाड़ से बाहर रह रहे लोगों के लिए भले ही हताहतों की संख्या या एक ख़बर भर हो, लेकिन पहाड़ में रहने वालों और वहां की पारिस्थितिकी के लिए ये सुरक्षित भविष्य बनाने की एक पुकार है. क्या सरकारें इसे सुन पा रही हैं?
उत्तराखंड में हाल ही में घटी लगातार आपदाएं हिमालयी जनजीवन के अस्तित्व पर आगामी सदियों के ख़तरों की आहट दे रही हैं. सरकार व नौकरशाही के कामचलाऊ रुख़ से जलवायु परिवर्तन समेत मानव निर्मित गंभीर विषम स्थितियों का सामना करना दुष्कर हो चला है.
जलपाईगुड़ी ज़िले में माल नदी में दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्र हुए थे जब अचानक आई बाढ़ में कम से कम आठ लोगों की डूब गए. इसी तरह की एक घटना में राजस्थान के अजमेर ज़िले में मूर्ति विसर्जन के दौरान डूबने से छह लोगों की मृत्यु हो गई.
जम्मू कश्मीर स्थित अमरनाथ गुफा मंदिर के पास बादल फटने से शुक्रवार को आई बाढ़ के बाद से 40 लोग लापता हैं. हादसे के बाद फंसे हुए 15,000 तीर्थयात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. अधिकारियों के अनुसार, बचाव अभियान ख़त्म होने के बाद अमरनाथ यात्रा फिर से शुरू करने पर फैसला किया जाएगा.
बीते फ़रवरी माह में हुए उत्तराखंड ग्लेशियर हादसे के बाद प्रलयंकारी बाढ़ लाने वाली ऋषिगंगा नदी पर बन रही एनटीपीसी की दो जलविद्युत परियोजना को मिली वन एवं पर्यावरण मंज़ूरी रद्द करने के लिए एक याचिका दायर की गई थी. हालांकि कुछ दिन पहले हाईकोर्ट ने चमोली ज़िले के पांच याचिकाकर्ताओं की प्रमाणिकता पर ही सवाल उठाते हुए इस याचिका को ख़ारिज कर दिया और प्रत्येक पर 10-10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के रहने वाले ये 29 लोग उत्तराखंड के चमोली ज़िले में तपोवन-विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर परियोजना में काम कर रहे थे और इस साल फरवरी महीने में ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ के कारण हुए हादसे के बाद से लापता थे. अचानक आई बाढ़ से चमोली ज़िले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था.
उत्तराखंड के चमोली ज़िले के पास नीति घाटी के सुमना क्षेत्र में शुक्रवार को एक ग्लेशियर के टूटने से कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई. भारतीय सेना ने शनिवार को शवों को बरामद किया और 384 अन्य लोगों को बचाने में कामयाब रही, जो शुक्रवार शाम तक इस क्षेत्र में सीमा सड़क संगठन के शिविर में काम कर रहे थे.
बीते सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. इससे ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे.
नदी, पहाड़, जैव-विविधता की अनदेखी कर बनी बड़ी हाइड्रो पावर परियोजनाओं से पैदा ऊर्जा को 'ग्रीन एनर्जी' कैसे कह सकते हैं? एक आकलन के अनुसार कई परियोजनाएं तो उनकी क्षमता की 25 प्रतिशत बिजली भी पैदा नहीं कर पा रही हैं. तो अगर ये परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं हैं, तो सरकार ज़िद पर क्यों अड़ी है?
भूगर्भ वैज्ञानिक निरंतर चेतावनी दे रहे हैं कि सभी ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न मौसमी बदलाव हो रहे हैं. ऐसे में तरह-तरह के हाइड्रोप्रोजेक्ट बनाने की ज़िद प्राकृतिक हादसों को आमंत्रण दे रही है. सबसे चिंताजनक यह है कि केंद्र या उत्तराखंड सरकार इन क्षेत्रों में लगातार हो रहे हादसों से कुछ नहीं सीख रही है.
बीते सात फरवरी को चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. इससे चमोली ज़िले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे, जिनमें से अभी तक 70 के शव बरामद हो चुके हैं और 134 लोग अब भी लापता हैं.
बीते सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. बाढ़ से रैणी गांव में स्थित उत्पादनरत 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था.
बीते सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से हिमस्खलन हुआ था, जिससे नदी के किनारे 13.2 मेगावाट की एक जलविद्युत परियोजना ध्वस्त हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था.
2018 में मोदी सरकार ने गंगा की ऊपरी धाराओं पर बनी पनबिजली परियोजनाओं के लिए 20-30 फीसदी पानी छोड़ना अनिवार्य बताया था. आधिकारिक दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि कमाई पर असर पड़ने के चलते विद्युत मंत्रालय ने मौजूदा व निर्माणाधीन परियोजनाओं में इसे लागू करने से छूट दिए जाने की बात कही थी.