इसके अलावा एक मार्च 2018 से 24 जुलाई 2019 के बीच खरीदे गए कुल चुनावी बॉन्ड में से 99.7 फीसदी बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे. करीब 80 फीसदी चुनावी बॉन्ड नई दिल्ली में भुनाए गए हैं.
महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अश्विनी कुमार ने लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन के दो मामलों पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. ये रिपोर्ट लातूर और वर्धा में नरेंद्र मोदी के भाषण को लेकर थी.
एसबीआई ने बताया कि मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 के बीच कुल 1,407.09 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे गए थे, जिसमें से 1,403.90 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे.
सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने कहा कि हम सिर्फ नोटिस जारी करके जवाब मांग सकते हैं. हमें किसी पार्टी के पहचान को रद्द करने या उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने का अधिकार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलों को निर्देश दिया है कि 30 मई तक वे चुनावी बॉन्ड की राशि और इसके दानकर्ताओं के नाम समेत सभी जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दें. अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में अंतिम फैसला विस्तृत सुनवाई के बाद लिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की याचिका पर हो रही सुनवाई में मोदी सरकार ने बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखने की बात कही, वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि पारदर्शिता के लिए दानकर्ताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि पहले चुनाव आयोग को ये पता चलता था कि 20,000 रुपये से ऊपर का चंदा किसने और किस पार्टी को दिया है. लेकिन, इलेक्टोरल बॉन्ड की वजह से अब ये जानकारी पूरी नहीं मिलती है.
चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व क़ानून, 1951 में संशोधन करके धारा 58बी शामिल करने की मांग की थी, ताकि राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को रिश्वत देने पर चुनाव को स्थगित या रद्द किया जा सके. लेकिन केंद्र सरकार ने इस मांग को ख़ारिज कर दिया.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने ईवीएम की विश्वसनीयता को संदेह से परे बताते हुए इसके संचालन से जुड़े कर्मचारियों के माकूल प्रशिक्षण की गुणवत्ता को बरकरार रखने की आयोग को नसीहत दी है.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा, पार्टियों के रणनीतिक निर्णयों को छोड़कर, उनके सभी प्रशासनिक फैसले और उनकी फंडिंग सार्वजनिक नज़रों में होने चाहिए.