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गुजरात के एक सत्र न्यायालय में राज्य पुलिस की एसआईटी ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की ज़मानत याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि वे 2002 के दंगों के बाद राज्य में भाजपा सरकार को गिराने के लिए दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल के इशारे पर रची गई एक साज़िश में शामिल थीं.
संजीव भट्ट अन्य मामलों में वर्ष 2018 से पालनपुर ज़ेल हैं. उनकी गिरफ़्तारी स्थानांतरण वॉरंट के ज़रिये हुई है. 2002 के गुजरात दंगों के एक मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देते वक़्त सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को आधार बनाकर अहमदाबाद पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व आईपीएस अधिकारियों आरबी श्रीकुमार व संजीव भट्ट के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की थी.
हिरासत में हिंसा और मौत के मामलों में गुजरात सरकार का अपनी पुलिस के साथ खड़े रहने का एक अनकहा-सा रिवाज़ रहा है, लेकिन संजीव भट्ट के मामले में ऐसा नहीं दिखता.
गुजरात में जामनगर सत्र न्यायालय ने भट्ट को साल 1990 के एक 'हिरासत में मौत' मामले में दोषी पाया है. उस समय संजीव भट्ट जामनगर में सहायक पुलिस अधीक्षक थे.
गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता संजीव भट्ट ने याचिका दायर आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट का रुख़ करने के लिए उनके पति को हिरासत में किसी काग़ज़ पर हस्ताक्षर करने की इजाज़त नहीं दी जा रही है.
वर्ष 1996 में गुजरात के बनासकांठा में कथित तौर पर मादक पदार्थ रखने के मामले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार करने का मामला. उस वक्त पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट बनासकांठा ज़िले के पुलिस अधीक्षक थे.