भारतीयता, परंपरा और आधुनिकता का असल अर्थ क्या है

भारत में जिस दल की केंद्रीय स्तर पर सरकार है और जो ‘स्वयंसेवी संगठन’ वर्चस्व की स्थिति में है उसका दबाव अकादमिक कार्यक्रमों और लोगों के सामान्य वैचारिक निर्माण पर स्पष्ट है. इस प्रक्रिया में किसी शब्द के अर्थ को इतना संकुचित कर दिया जा रहा है कि उसकी अर्थवत्ता ही संदिग्ध हो जा रही है.

कंगना ने जो कहा वो उनका विचार है या वो महज़ ज़रिया हैं

कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हज़ार भुजाएं और हज़ार-हज़ार मुंह हैं. इन 'हज़ार-हज़ार मुंहों' में भाजपा सांसद वरुण गांधी को छोड़ दें तो कंगना के मामले पर चुप्पी को लेकर गज़ब की सर्वानुमति है. फिर इस नतीजे तक क्यों नहीं पहुंचा जा सकता कि कंगना का मुंह भी उन हज़ार मुंहों में ही शामिल है?

कंगना रनौत के ‘2014 में मिली आज़ादी’ बयान पर विवाद, वरुण गांधी बोले- पागलपन कहें या देशद्रोह

कंगना रनौत ने एक चैनल के कार्यक्रम में कहा कि भारत को ‘1947 में आज़ादी नहीं, बल्कि भीख मिली थी’ और ‘आज़ादी 2014 में मिली है' जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई. भाजपा सांसद वरुण गांधी समेत कई नेताओं ने इसकी आलोचना की है. कई दलों ने कंगना के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने की मांग उठाई है.

खुले विचारों वाले नागरिकों से लोकतंत्र मज़बूत होता है: अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन

भारतीय नेतृत्व के साथ बैठकों से पहले नागरिक संस्थाओं के साथ अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के सार्वजनिक कार्यक्रम में किसानों के प्रदर्शन, प्रेस की स्वतंत्रता, सीएए, अल्पसंख्यकों के अधिकार और चीन की आक्रमकता को लेकर चिंता व्यक्त की और अफगानिस्तान की स्थिति जैसे मुद्दे उठाए गए.

असहमति का अधिकार लोकतंत्र की विशेषता, सरकार की आलोचना होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि यदि कोई पार्टी सत्ता में आ जाती है तो वो आलोचनाओं से परे नहीं रह सकती है. असहमति का अधिकार ऐसी आलोचनाओं की इजाज़त देता है.

बेबाक: बड़े विषय को लेकर बनाई गई एक शॉर्ट फिल्म

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मूबी पर उपलब्ध शाज़िया इक़बाल की 21 मिनट की फिल्म बेबाक एक निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार की लड़की फतिन और उसके सपनों की कहानी है.

हम पराधीनता से स्वाधीनता तक पहुंच गए, पर स्वतंत्रता तक पहुंचना अभी बाकी है

पेरियार ने कहा था, 'हमें यह मानना होगा कि स्वराज तभी संभव है, जब पर्याप्त आत्मसम्मान हो, अन्यथा यह अपने आप में संदिग्ध मसला है.' भारतीय संविधान की उद्देशिका बताती है कि भारत अब एक संप्रभु और स्वाधीन राष्ट्र है, लेकिन इसे अभी 'स्वतंत्र' बनाया जाना बचा हुआ है.

संविधान जजों का पवित्र ग्रंथ, न्याय का पलड़ा वंचितों की ओर झुका होना चाहिए: जस्टिस दीपक गुप्ता

अपने विदाई भाषण में जस्टिस दीपक गुप्ता ने पूरी न्यायिक व्यवस्था में मानवीय मूल्यों को स्थापित करने की बात की. उन्होंने कहा कि वकील अपने मुवक्किल से बेतहाशा फीस नहीं ले सकते हैं.

असहमति का अधिकार लोकतंत्र के लिए आवश्यक है: जस्टिस दीपक गुप्ता

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘लोकतंत्र और असहमति’ पर एक व्याख्यान देते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि अगर यह भी मान लिया जाए कि सत्ता में रहने वाले 50 फीसदी से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं तब क्या यह कहा जा सकता है कि बाकी की 49 फीसदी आबादी का देश चलाने में कोई योगदान नहीं है?

असहमति या विरोध को एंटी नेशनल बताना लोकतंत्र के मूल विचार पर चोट: जस्टिस चंद्रचूड़

अहमदाबाद में हुए एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है जो क़ानून के शासन का उल्लंघन है.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का ‘हम देखेंगे’ मज़हब का नहीं अवामी इंक़लाब का तराना है…

जो लोग ‘हम देखेंगे’ को हिंदू विरोधी कह रहे हैं, वो ईश्वर की पूजा करने वाले 'बुत-परस्त' नहीं, सियासत को पूजने वाले ‘बुत-परस्त’ हैं.

खुद से अलग लोगों के ख़िलाफ़ जहर उगलने का माध्यम बन गई है स्वतंत्रता: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विडंबना यह है कि एक वैश्विक रूप से जुड़े समाज ने हमें उन लोगों के प्रति असहिष्णु बना दिया है, जो हमारे अनुरूप नहीं हैं. स्वतंत्रता उन लोगों पर जहर उगलने का एक माध्यम बन गई है, जो अलग तरह से सोचते हैं, बोलते हैं, खाते हैं, कपड़े पहनते हैं और विश्वास करते हैं.

लोकतंत्र और आज़ादी के असल मायने आदिवासी समाज से सीखने होंगे

विश्व आदिवासी दिवस: आदिवासियों की अपनी बोलचाल की भाषा और आम चर्चा में लोकतंत्र या आज़ादी शब्द का कोई स्थान नहीं है. किसी आदिवासी से इन शब्दों के बारे में पूछें तो वो शायद चुप रहे, लेकिन इसके असली मायने का एहसास उन्हें स्वाभाविक रूप से है.

अपूर्वानंद की मास्टरक्लास: क्या गांधी मुस्लिमपरस्त थे?

मास्टरक्लास में प्रो. अपूर्वानंद देश में मुसलमानों की नागरिकता पर उठ रहे सवाल और महात्मा गांधी के नज़रिये पर इतिहासकार सुधीर चंद्रा से चर्चा कर रहे हैं.

कृष्णा सोबती: स्त्री मन की गांठ खोलने वाली कथाकार

‘मित्रो मरजानी’ के बाद सोबती पर पाठक फ़िदा हो उठे थे. ये इसलिए नहीं हुआ कि वे साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ी थीं. ऐसा हुआ क्योंकि उनकी महिलाएं समाज में तो थीं, लेकिन उनका ज़िक्र करने से लोग डरते थे.