झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि केंद्र के वन संरक्षण नियम 2022 स्थानीय ग्रामसभा की शक्तियों को कमज़ोर करते हैं और वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को छीनते हैं. पत्र में रेखांकित किया गया है कि नियमों ने ग़ैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग करने से पहले ग्रामसभा की पूर्व सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है.
केंद्र द्वारा राज्य में 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी के बाद अडानी समूह ने नवंबर 2020 में गोंदलपुरा कोयला ब्लॉक का नियंत्रण लिया था. स्थानीयों का कहना है कि परियोजना में 513.18 हेक्टेयर भूमि का खनन प्रस्तावित है, जिसमें से 200 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि है, बाकी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा उपजाऊ कृषि भूमि है.
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कहा है वन संरक्षण नियम 2022 ने वन भूमि के डायवर्ज़न से पहले वनवासियों की सहमति लेने की आवश्यकता को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने बीते जून महीने में नए नियमों को अधिसूचित किया था.
आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं ने आदिवासियों को सशक्त किया है, गांवों में उम्मीद जगाई है, इसके कई उदाहरण झारखंड के गुमला ज़िले में देखने को मिलते हैं. चैनपुर प्रखंड की आदिवासी महिलाएं बताती हैं कि ग्राम सभा की मदद से ग्रामीणों ने आस-पास के जंगलों, पहाड़ों, चट्टानों, नदियों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया है.
छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों के हज़ारों आदिवासी केंद्र द्वारा लाए गए वन संरक्षण नियमों के साथ ही राज्य सरकार के पेसा नियमों को वापस लेने और राज्य में 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं.