शेयरधारकों को लिखे पत्र में भारतीय उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा कि भारत में कोविड-19 ऐसे समय आया है, जबकि वैश्विक अनिश्चितता तथा घरेलू वित्तीय प्रणाली पर दबाव की वजह से आर्थिक परिस्थितियां पहले से सुस्त थीं.
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद पर लॉकडाउन का सबसे गहरा असर दिख सकता है. वहीं, मध्य प्रदेश, पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इसका असर सबसे कम रह सकता है.
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की टिप्पणी इस संबंध में महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़े के अनुसार भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 4.7 प्रतिशत रही जो करीब सात साल का न्यूनतम स्तर है.
कांग्रेस ने मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर के 4.7 फीसदी रहने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा और दावा किया कि आंकड़ों से स्पष्ट है कि ‘करो-ना’ वायरस ने इस सरकार को पंगु बना दिया है.
आईएमएफ के प्रवक्ता गैरी राइस ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा इस महीने पेश किए गए बजट के बारे में पूछे जाने पर कहा कि भारत की आर्थिक परिस्थितियां आईएमएफ के पहले के पूर्वानुमानों की तुलना में कमजोर हैं.
आईएमएफ के ताजा अनुमान के अनुसार 2019-20 में वैश्विक वृद्धि दर 2.9 प्रतिशत रहेगी. जबकि 2020 में इसमें थोड़ा सुधार आयेगा और यह 3.3 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी. उसके बाद 2021 में 3.4 प्रतिशत रहेगी.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने कहा कि आर्थिक वृद्धि के अनुमान में जो कमी की गई है, वह कुछ उभरते बाजारों में खासकर भारत में आर्थिक गतिविधियों को लेकर अचंभित करने वाली नकारात्मक बातें हैं. कुछ मामलों में यह आकलन सामाजिक असंतोष के प्रभाव को भी दिखाता करता है.
साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने ये अनुमान जताया था कि चालू वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.9 फीसदी रह सकती है.
नरेंद्र मोदी सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहते हुए अरविंद सुब्रमण्यन ने दिसंबर 2014 में दोहरे बैलंस शीट की समस्या उठाई थी, जिसमें निजी उद्योगपतियों द्वारा लिए गए कर्ज बैंकों के एनपीए बन रहे थे. सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर से दोहरे बैलेंस शीट के संकट से जूझ रही है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारत आर्थिक मंदी के घेरे में है. आर्थिक सुस्ती को दूर करने की शुरुआत के लिए यह जरूरी है कि मोदी सरकार सबसे पहले समस्या को स्वीकार करे.
आर्थिक वृद्धि में गिरावट के विपरीत अक्टूबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गई. यह पिछले 16 माह में सबसे ऊंची दर रही है. मुद्रास्फीति की यह दर रिज़र्व बैंक के अनुमान से काफी ऊंची रही है.
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रहने को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नाकाफ़ी बताया. उन्होंने यह भी जोड़ा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है लेकिन हमारे समाज की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है.
एनएसओ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में गिरावट और कृषि क्षेत्र में पिछले साल के मुकाबले कमज़ोर प्रदर्शन से वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रह गई. बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह सात प्रतिशत थी.
आरबीआई के गवर्नर रहे रघुराम राजन ने भारत में जीडीपी की गणना के तरीके पर नए सिरे से गौर करने का भी सुझाव दिया है.
अमेरिका के ब्राउन विश्वविद्यालय में एक लेक्चर के दौरान पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि बिना सोच-विचार के नोटबंदी लाने और बुरी तरह से जीएसटी लागू करने की वजह से भारत इस समय आर्थिक सुस्ती की दौर से गुजर रहा है.