कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगमंच असाधारण रूप से गाता-नाचता-भागता-दौड़ता रंगमंच था. प्रश्नवाचक और नैतिक होते हुए भी वह आनंददायी था. उनके यहां नाटक लीला है और कई बार वह आधुनिकता की गुरुगंभीरता को मुंह चिढ़ाता भी लगता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगसत्य लोग थे: लोग, जो साधारण और नामहीन थे, जो अभाव और विपन्नता में रहते थे लेकिन जिनमें अदम्य जिजीविषा, मटमैली पर सच्ची गरिमा और सतत संघर्षशीलता की दीप्ति थी.
हबीब तनवीर की जितनी थियेटर पर पकड़ थी, उतनी ही मज़बूत पकड़ समाज, सत्ता और राजनीति पर थी. वे रंगमंच को एक पॉलिटिकल टूल मानते थे. उनका कहना था कि समाज और सत्ता से कटकर किसी क्षेत्र को नहीं देखा जा सकता.