हजारी प्रसाद द्विवेदी: विशुद्ध संस्कृति सिर्फ़ बात की बात है, शुद्ध है केवल मनुष्य की जिजीविषा

हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान इसी भूभाग में पैदा हुए थे जो संस्कृति के नाम पर अभिमान करने के साथ उसमें छिपे अन्याय को भी पहचान सकते थे. इस संस्कृति के प्रति इतना मोह क्यों जो वास्तव में असंस्कृत है?

साढ़े चार आखर मनुष्यता का, पढ़े सो पंडित होय…

हजारी प्रसाद द्विवेदी सही मायने में पंडित थे. वैसे पंडित नहीं, जो शास्त्र और वेद को पढ़कर जड़ और हिंसक हो जाता है, बल्कि वैसे, जो कबीर की तरह प्रेम या मनुष्यता का ढाई आखर पढ़कर पंडित होता है.