केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था, जब वह यूपी के हाथरस में सामूहिक बलात्कार केस की रिपोर्ट के लिए जा रहे थे. सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ज़मानत देते हुए हर सप्ताह यूपी के एक थाने में हाजिरी लगाने को कहा था. अब यह शर्त हटा दी गई है.
प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की छात्र इकाई कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्य अतीक़-उर-रहमान को 5 अक्टूबर 2020 को पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन के साथ उस समय गिरफ़्तार कर लिया गया था, जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में बलात्कार पीड़िता से मिलने जा रहे थे. बीते 14 जून को उन्हें जेल से रिहा किया गया है.
वीडियो: केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था, जब वह यूपी के हाथरस में सामूहिक बलात्कार मामले की रिपोर्ट के लिए जा रहे थे. बीते 2 फरवरी को उन्हें दो साल से अधिक समय के बाद ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. उनसे द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि 28 महीनों के बाद केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की जेल से रिहाई हमें इस बात का ध्यान कराती है कि सरकार यूएपीए के तहत लोगों को बिना किसी आरोप के अनिश्चित समय के लिए हिरासत में रख सकती है.
केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन और तीन अन्य को अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था, जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक बलात्कार मामले की रिपोर्ट करने के लिए जा रहे थे. यूपी पुलिस ने कप्पन पर जाति आधारित दंगा भड़काने का इरादा रखने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मामला दर्ज किया था. इसके बाद उन पर देशद्रोह और यूएपीए के तहत भी मामले जोड़े गए थे.
14 सितंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के हाथरस में कथित तौर पर ऊंची जाति के युवकों ने 19 साल की एक दलित युवती का बलात्कार किया था. उनके साथ बुरी तरह मारपीट भी की गई थी. 29 सितंबर 2020 को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई थी.
मुंबई के साकीनाका में 10 सितंबर को एक महिला के साथ बलात्कार और निजी अंगों में लोहे की छड़ डालने का मामला सामने आया था. छड़ से निर्ममता से हमला करने के बाद आरोपी ने महिला पर चाकू से भी वार किए थे. महिला ने घटना के अगले दिन अस्पताल में दम तोड़ दिया था. शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में कहा गया है कि इस घटना की तुलना हाथरस मामले से करना ग़लत है.
एक मृतक महिला के पति ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि उनकी दिवगंत पत्नी की तस्वीर को हाथरस बलात्कार पीड़ित बताकर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जा रहा है. हाईकोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, गूगल और ट्विटर से जवाब मांगा है.
हाथरस ज़िले में सितंबर 2020 में एक दलित युवती से बलात्कार कर बेरहमी से मारपीट की गई थी, जिसके बाद इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी. दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में पीड़िता की पहचान उजागर करने वाले मीडिया प्रकाशनों समेत कई के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है.
उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को ठाकुर जाति के चार युवकों ने कथित तौर पर एक दलित युवती से बलात्कार कर बेरहमी से मारपीट की थी, जिसके बाद इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई थी. सीबीआई ने अभियुक्तों पर एससी/एसटी एक्ट के तहत भी आरोप भी लगाए हैं.
नागरिक अधिकार संस्था ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ ने उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की है. संस्था का कहना है परिवार नज़रबंद जैसी स्थितियों में रह रहा है. सीबीआई को मामले में पुलिस की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच पूरी हो जाने के बाद अदालत फ़ैसला करेगी कि मामले को उत्तर प्रदेश से दिल्ली ट्रांसफर किया जाए या नहीं.
वीडियो: उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के कथित बलात्कार और मौत के बाद प्रशासन के व्यवहार से आहत ग़ाज़ियाबाद के करहैड़ा गांव के वाल्मीकि समुदाय के 236 लोगों ने बीते 14 अक्टूबर को बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था.
उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के कथित बलात्कार और मौत के बाद प्रशासन के व्यवहार से आहत ग़ाज़ियाबाद के करहैड़ा गांव के दलित समुदाय के 236 लोगों ने बीते 14 अक्टूबर को हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था.
हाल ही में एएमयू प्रशासन ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में अस्थायी चिकित्साधिकारी के तौर पर काम कर रहे डॉक्टर मोहम्मद अज़ीमुद्दीन मलिक और डॉक्टर उबैद इम्तियाज़ हक़ की सेवाएं समाप्त कर दी थी. इन्होंने हाथरस बलात्कार मामले में पुलिस के उलट बयान दिया था.