केंद्रीय सतर्कता आयोग की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक इन 6,700 मामलों में से 275 मामले 20 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं. कुल 1,939 मामले ऐसे हैं, जो विभिन्न अदालतों में 10-20 साल से चल रहे हैं, जबकि 2,273 मामलों में सुनवाई 5-10 साल से चल रही है.
श्रीनगर में हुए एक समारोह में सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह ज़रूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकारों और सम्मान को मान्यता दी गई है और उन्हें संरक्षित किया गया है. उन्होंने जोड़ा कि हम अपनी अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे हैं. अगर इस पर तत्काल ध्यान नहीं देते हैं, तो न्याय तक पहुंच का संवैधानिक आदर्श विफल हो जाएगा.
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में बताया कि जहां तक अदालतों में जजों के ख़ाली पड़े पदों का सवाल है तो देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों के उच्च न्यायालयों में सबसे अधिक पद ख़ाली पड़े हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थायी और अतिरिक्त पदों पर सर्वाधिक 67 रिक्तियां हैं.
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने एक मामले में अग्रिम ज़मानत का अनुरोध करने वाली याचिका ख़ारिज कर दी थी. इस मामले में सात साल पहले प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नियमित तौर पर गिरफ़्तारी की जाती है तो यह किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को ‘बेहिसाब नुकसान’ पहुंचा सकती है.
केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में बताया कि साल 2019 से इस साल 23 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कुल 3,036 जनहित याचिकाएं दायर की गईं. देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित दायर मामलों में ओडिशा सबसे आगे है, जहां इस अवधि में कुल 1,552 याचिकाएं दायर की गई हैं.
केंद्र सरकार का यह क़दम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि नए आईटी नियमों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दिल्ली और मद्रास हाईकोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं. नए आईटी नियमों के तहत सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग कंपनियों को तेज़ी से विवादास्पद सामग्रियों को हटाना होगा, शिकायत समाधान अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और जांच में सहयोग करना होगा.
अपराध सुधार के लिए काम करने वाले एक समूह के अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली की निचली अदालतों द्वारा साल 2000 से 2015 तक दिए गए मृत्युदंड के 72 फीसदी फ़ैसले समाज के सामूहिक विवेक को ध्यान में रखते हुए लिए गए थे.
राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार, निचली अदालतों में 5,135 न्यायिक अधिकारियों की कमी है जबकि उच्च न्यायालयों में 384 न्यायाधीशों की कमी है.
वर्ष 2016 तक देश की 24 उच्च अदालतों में 40.15 लाख मामले लंबित थे. इनमें से दस वर्ष या अधिक समय से लंबित मामलों की संख्या 19.45 फीसदी है.
केंद्र ने कोर्ट में कहा, दोषी नेताओं पर उम्र भर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध विचार योग्य नहीं, चुनाव आयोग दोषी विधायकों सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध के पक्ष में.