अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी प्रशासन के सदाचार प्रचार एवं अवगुण रोकथाम संबंधी मंत्रालय द्वारा जारी नए धार्मिक दिशानिर्देशों के मुताबिक़, अफ़ग़ान चैनलों को महिलाओं के अभिनय वाले ड्रामा और सोप ओपेरा का प्रसारण न करने का निर्देश दिया गया है. साथ ही शरिया क़ानून के ख़िलाफ़ मानी जाने वाली फिल्मों पर भी प्रतिबंध लगाने को कहा गया है.
बीते शनिवार को अयोध्या में डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की मौजूदगी वाले कार्यक्रम को लेकर संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में छात्रों ने रोष जताते हुए ऑडिटोरियम के सामने प्रदर्शन किया. छात्रों का कहना था कि राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए उनकी पढ़ाई नहीं रोकी जानी चाहिए.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज के प्रोफेसर राकेश कुमार पांडेय ने बुधवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि डीयू के एक कॉलेज के 20 सीटों वाले पाठ्यक्रम में 26 छात्रों को केवल इसलिए प्रवेश देना पड़ा क्योंकि उन सभी के पास केरल बोर्ड से 100 प्रतिशत अंक थे. पिछले कुछ वर्षों से केरल बोर्ड 'मार्क्स जिहाद' लागू कर रहा है. इस बयान पर सांसदों सहित छात्र संगठनों भी आपत्ति दर्ज करवाई है.
वर्तमान में जिस तरह से धार्मिक शिक्षा के लिए रास्ता सुगम किया जा रहा है, ऐसे में यह भी याद रखना चाहिए कि जैसे-जैसे यह शिक्षा आम होती जाएगी, वह वैज्ञानिक चिंतन के विकास को बाधित करेगी. नागरिकों को यह बताना ज़रूरी है कि धार्मिक चेतना और वैज्ञानिक चेतना समानांतर धाराएं हैं और आपस में नहीं मिलतीं.
इरफ़ान हबीब, आदित्य मुखर्जी और पंकज झा जैसे प्रमुख इतिहासकारों ने यूजीसी द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम की आलोचना करते हुए इसे इतिहास को 'विकृत करने' का प्रयास कहा है, साथ ही एक विषय के तौर पर इतिहास का महत्व कम करने का आरोप लगाया है.
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के अंतरिम मेयर ने कहा है कि देश के नए तालिबान शासकों ने शहर की कई महिला कर्मचारियों को घर पर ही रहने का आदेश दिया है. केवल उन महिलाओं को काम करने की अनुमति दी गई है, जिनके स्थान पर पुरुष काम नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि इनमें डिजाइन और इंजीनियरिंग विभागों में कुशल कामगारों के अलावा महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालयों की देखरेख करने वाली महिलाएं शामिल हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बाक़ी हक़्क़ानी ने नई सरकार के गठन के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में नई नीतियों का ऐलान करते हुए कहा कि हम लड़के और लड़कियों को एक साथ पढ़ने की मंज़ूरी नहीं दे सकते. महिला विद्यार्थियों को तालिबान से कुछ प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें अनिवार्य ड्रेस कोड भी होगा. हक़्क़ानी ने कहा कि महिला विद्यार्थियों को हिजाब पहनना होगा.
विश्वविद्यालय परिसर को ऐसा होना ही चाहिए जहां भय न हो, आत्मविश्वास हो, ज्ञान की मुक्ति हो और जहां विवेक की धारा कभी सूखने न पाए. तमाम सीमाओं के बावजूद भारतीय विश्वविद्यालय कुछ हद तक ऐसा माहौल बनाने में सफल हुए थे. पर पिछले पांच-सात वर्षों से कभी सुधार, तो कभी ‘देशभक्ति’ के नाम पर ‘विश्वविद्यालय के विचार’ का हनन लगातार जारी है.
विश्वविद्यालय में यह तर्क नहीं चल सकता कि चूंकि पैसा सरकार (जो असल में जनता का होता है) देती है, इसलिए विश्वविद्यालयों को सरकार की तरफ़दारी करनी ही होगी. बेहतर समाज के निर्माण के लिए ज़रूरी है कि विश्वविद्यालय की रोज़मर्रा के कामकाज में कम से कम सरकारी दख़ल हो.
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में बताया कि एक मार्च 2020 तक केंद्र सरकार के सभी विभागों में स्वीकृत पदों की संख्या 40,04,941 थी, जिनमें से 31,32,698 कर्मचारी कार्यरत थे. एक अन्य सवाल के जवाब में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और उसके अधीनस्थ कार्यालयों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य शैक्षणिक/तकनीकी/प्रबंधन संस्थानों में रिक्त पदों की संख्या 13,701 थी.
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में एक शिक्षक के साथ छात्र नेताओं की बदसलूकी क्षोभ का विषय है. कोई पक्की नौकरी छोड़कर अध्यापन में आए, जहां उसे छात्रों के सामने अपमानित किया जाए और इसके लिए कोई सज़ा भी न हो, तो मान लेना चाहिए कि बिहार में प्रतिभा के मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया गया है.
शिक्षा में साधनों की असमानता का एक पक्ष यह भी है कि जिन अकादमिक या बौद्धिक चिंताओं पर हम महानगरीय शिक्षा संस्थानों में बहस होते देखते हैं, वे राज्यों के शिक्षा संस्थानों की नहीं हैं. राज्यों के कॉलेजों के लिए अकादमिक स्वतंत्रता का प्रश्न ही बेमानी है क्योंकि अकादमिक शब्द ही उनके लिए अजनबी है.
शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने लोकसभा में बताया कि देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 18,647 पद ख़ाली हैं, जिनमें 6,210 शैक्षणिक और 12,437 गैर-शैक्षणिक पद हैं.
विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा निदेशक की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा बयान नहीं देगा, जो केंद्र/राज्य सरकार की किसी भी वर्तमान या हालिया नीति या कार्रवाई की आलोचना हो. आदेश का पालन नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है.
अगर सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर गंभीर है, तो उसे इस पर संसद में बहस चलानी चाहिए. किसी बड़ी नीति में बदलाव के लिए हर तरह के विचारों पर जनता के सामने चर्चा हो. इस तरह देश की विधायिका को उसके अधिकार से वंचित रख शिक्षा नीति बदलना देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है.