भारतीय समाज में शादी-ब्याह के मामले पेचीदा विरोधाभासों और विडंबनाओं में उलझे हुए हैं. इन्हें किसी क़ानूनी करतब से सुलझाना नामुमकिन है. जब युवा महिलाओं को स्तरीय शिक्षा के साथ वाजिब वेतन पर रोज़गार मिलेगा तब वे सही मायने में स्वावलंबी और सशक्त बन सकेंगी. फिर वे ख़ुद तय करेंगी कि शादी करनी भी है या नहीं, और अगर करनी है तो कब, किससे और कैसे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीते 15 दिसंबर को बाल विवाह (रोकथाम) अधिनियम, 2006 में संशोधन को मंज़ूरी दी थी. इस संशोधन के तहत लड़कियों के विवाह की न्यूनतम क़ानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के समान 21 साल करने का प्रावधान है.