शीर्ष अदालत का फैसला 2011 की उस याचिका पर आया था, जिसमें सवाल उठाया गया था कि क्या हिंदू क़ानूनों के तहत बिना विवाह के हुए बच्चे अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्से के हकदार हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वसीयत के बिना किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद उनकी बेटी उनके द्वारा स्व-अर्जित या पारिवारिक विभाजन में मिली संपत्ति में अपने अन्य संबंधियों (जैसे मृत पिता के भाइयों के बेटे/बेटियों) के साथ वरीयता में उत्तराधिकारी होने की हक़दार होगी.