मोहन भागवत ने एलजीबीटी समुदाय का समर्थन किया, कहा- उनकी निजता का सम्मान होना चाहिए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि इस तरह के झुकाव वाले लोग हमेशा से थे, जब से मानव का अस्तित्व है. यह जैविक है, जीवन का एक तरीका है. हम चाहते हैं कि उन्हें उनकी निजता का हक़ मिले और वह इसे महसूस करें कि वह भी इस समाज का हिस्सा है.

संत और साध्वी होने के लिए क्या घृणा प्रचारक होना प्राथमिक शर्त है?

पिछली सदी के आख़िरी दो दशकों में इस बात पर बहस होती थी कि साध्वी उमा भारती अधिक हिंसक हैं या साध्वी ऋतंभरा. इन दोनों की परंपरा फली फूली. साध्वी प्राची, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसी शख़्सियतों के लिए सिर्फ़ लोगों के दिलों में नहीं, विधान सभाओं और संसद में भी जगह बनी.

आज हिंदी मध्यवर्ग का असली राजनीतिक प्रतिपक्ष हिंदी साहित्य ही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आम तौर पर मध्यवर्ग में प्रवेश ज्ञान के आधार पर होता आया है पर यही वर्ग इस समय ज्ञान के अवमूल्यन में हिस्सेदार है. एक ओर तो वह अपनी मातृभाषा से लगातार विश्वासघात कर रहा है, दूसरी ओर हिंदी को हिंदुत्व की, यानी भेदभाव और नफ़रत फैलाने वाली विचारधारा की राजभाषा बनाने पर तुला है.

क्या ग़ैर हिंदुओं के बारे में न जानकर हिंदू सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हैं या दरिद्र

आज के भारत में ख़ासकर हिंदुओं के लिए ज़रूरी है कि वे ग़ैर हिंदुओं के धर्म, ग्रंथों, व्यक्तित्वों, उनके धार्मिक आचार-व्यवहार को जानें. मुसलमान, ईसाई, सिख या आदिवासी तो हिंदू धर्म के बारे में काफ़ी कुछ जानते हैं लेकिन हिंदू प्रायः इस मामले में सिफ़र होते हैं. बहुत से लोग मोहर्रम पर भी मुबारकबाद दे डालते हैं. ईस्टर और बड़ा दिन में क्या अंतर है? आदिवासी विश्वासों के बारे में तो हमें कुछ नहीं मालूम.

सामूहिक हत्याओं के उच्चतम जोख़िम वाले देशों में भारत आठवें स्थान पर: अमेरिकी रिपोर्ट

एक अमेरिकी शोध संस्थान ने 162 देशों में सामूहिक हत्याएं होने की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट में भारत को आठवें पायदान पर रखते हुए ऐसे कई उदाहरणों पर प्रकाश डाला गया है कि किस तरह केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभाव किया है.

कश्मीर फाइल्स पर नदाव लपिद की राय भारत की प्रतिष्ठा की चिंता का ही नतीजा है

इस्राइली फिल्मकार नदाव लपिद को लगा कि ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म समारोह की गरिमा को धूमिल करने वाली प्रविष्टि है, उसकी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए उन्होंने ईमानदारी से अपनी राय रखी. भारत उनके लिए सत्यजित राय, मृणाल सेन, अपर्णा सेन आदि का भारत है. वे उसे अपनी निगाह में गिरते नहीं देखना चाहते.

सावरकर पर हमारी चर्चाओं को अतीत में अटके न रहकर वर्तमान में आगे बढ़ना होगा

'माफ़ीवीर' कहकर सावरकर की खिल्ली उड़ाने की जगह सावरकरवाद के आशय पर बात करना हमारे लिए आवश्यक है. अगर वह कामयाब हुआ तो हम सब चुनाव के ज़रिये राजा चुनते रहेंगे और आज्ञाकारी प्रजा की तरह उसका हर आदेश मानना होगा.

भारत में रहने वाला हर शख़्स ‘हिंदू’, किसी को पूजा के तरीके बदलने की ज़रूरत नहीं: भागवत

छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले में स्वयंसेवकों के एक कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है. जो भारत को अपनी मातृभूमि मानता है, विविधता में एकता वाली संस्कृति को जीना चाहता है, वह किसी भी तरह पूजा करे, कोई भी भाषा बोले, खानपान, रीति-रिवाज कोई हो, वह​ हिंदू है.

भाजपा से ज़्यादा हिंदुत्ववादी होकर क्या पाएगी आम आदमी पार्टी

कई जानकार कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के नोट-राग ने ज़रूरी मुद्दों व जवाबदेहियों से देशवासियों का ध्यान भटकाकर लाभ उठाने में भाजपा की बड़ी मदद की है. ये जानकार सही सिद्ध हुए तो केजरीवाल की पार्टी की हालत ‘माया मिली न राम’ वाली भी हो सकती है.

केजरीवाल ‘प्रो-हिंदू’ या ‘एंटी-हिंदू’ हो न हों, मोदी के नक़्शे-क़दम पर ज़रूर हैं

अरविंद केजरीवाल के 'देश की तरक्की के लिए लक्ष्मी-गणेश का चित्र नोटों पर छापने' की सलाह से पहले देश ने पैसों के बारे में ऐसा अहमक़ाना प्रस्ताव 2016 में देखा था, जब देश के प्रधानमंत्री ने अचानक चलन में रहे अस्सी फीसदी नोटों को रातोंरात अवैध बताकर भ्रष्टाचार और काले धन पर अंकुश लगाने का दावा किया था.

नव बौद्ध अब मुस्लिम विरोधी हिंदुत्व की आग जलाए रखने को ईंधन बने रहने को तैयार नहीं हैं

सवर्ण समाज झूठ बोलता रहा है कि वह समानता के उसूल को मानता है. उसने किसी भी स्तर पर दलितों के साथ साझेदारी से इनकार किया. दलितों का हिंदू बने रहना मात्र एक जगह उपयोगी है- कि ‘मुसलमान, ईसाई’ के प्रति द्वेष और घृणा पर आधारित राजनीति के लिए ऐसे हिंदुओं की संख्या बढ़ती रहनी चाहिए.

बिखराव के बीज बोते हुए सद्भाव का खेल खेलते रहने में संघ को महारत हासिल है

संघ की स्वतंत्रतापूर्व भूमिकाओं की याद दिलाते रहना पर्याप्त नहीं है- उसके उन कृत्यों की पोल खोलना भी ज़रूरी है, जो उसने तथाकथित प्राचीन हिंदू गौरव के नाम पर आज़ादी के साझा संघर्ष से अर्जित और संविधान द्वारा अंगीकृत समता, बहुलता व बंधुत्व के मूल्यों को अपने कुटिल मंसूबे से बदलने के लिए बीते 75 वर्षों में किए हैं.

देश में फैली सांप्रदायिकता का वायरस अब अप्रवासी भारतीयों तक पहुंच गया है

भारतीय अप्रवासी राजनीति अब भारत के ही सूरत-ए-हाल का अक्स है. वही ध्रुवीकरण, वही सोशल मीडिया अभियान, वही राजनीतिक और आधिकारिक संरक्षण और वैसी ही हिंसा. असहमति तो दूर की बात है, एक भिन्न नज़रिये को भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है.

अब देश की जनता को ही सिकुड़ते लोकतंत्र के विरुद्ध खड़ा होना होगा

मोदी सरकार एक ऐसा राज्य स्थापित करने की कोशिश में है जहां जनता सरकार से जवाबदेही न मांगे. नागरिकों के कर्तव्य की सोच को इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ा था. मोदी सरकार बिना आपातकाल की औपचारिक घोषणा के ही अधिकारहीन कर्तव्यपालक जनता गढ़ रही है.

पूर्व आरएसएस कार्यकर्ता का दावा- नांदेड़ धमाके में थी शीर्ष दक्षिणपंथी नेताओं की भूमिका

पच्चीस साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहे यशवंत शिंदे ने सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष दायर एक हलफ़नामे में दावा किया है कि 2006 नांदेड़ धमाके से तीन साल पहले विहिप के एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें आतंकी प्रशिक्षण शिविर के बारे में बताया था, जो 'देशभर में बम धमाके करने के इरादे से चलाया गया था.'

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