सरकार जिस उमर ख़ालिद उनके मज़हब तक सीमित कर देना चाहती है, पर वो एक गंभीर शोधार्थी हैं, जिनकी पीएचडी का विषय सिंहभूम का आदिवासी समाज हैं. उनकी थीसिस में लिखा गया हर शब्द एक ऐसे शख़्स को हमारे सामने लाता है, जो बेहद गहराई से लोकतंत्र और इसके अभ्यासों के साथ जिरह कर रहा है.