असम की फिल्म निर्देशक रीमा दास की फिल्म विलेज रॉकस्टार ने पद्मावत, राज़ी, अक्टूबर, पैडमैन, लव सोनिया जैसी 29 फिल्मों को पछाड़कर बनाई जगह.
दलित मुद्दों पर फिल्म बनाने में आने वाली चुनौतियों पर स्वतंत्र फिल्मकार पवन के श्रीवास्तव से बात कर रहे हैं द वायर के फैयाज़ अहमद वजीह.
गोलमाल, धमाल, आॅल द बेस्ट, वन टू थ्री, फंस गए रे ओबामा में यादगार किरदार निभाने के बाद आंखों देखी, मसान, कड़वी हवा और अंग्रेज़ी में कहते हैं जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले अभिनेता संजय मिश्रा से प्रशांत वर्मा की बातचीत.
सत्यजीत रे ने देश की वास्तविक तस्वीर और कड़वे सच को बिना किसी लाग-लपेट के ज्यों का त्यों अपनी फिल्मों में दर्शाया. 1943 में बंगाल में पड़े अकाल को उन्होंने ‘पाथेर पांचाली’ दिखाया तो वहीं ‘अशनि संकेत’ में अकाल की राजनीति और ‘घरे बाइरे’ में हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद पर चोट की.
साक्षात्कार: ‘ये वो मंज़िल तो नहीं’, ‘धारावी’, ‘इस रात की सुबह नहीं’, ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी’ जैसी फिल्में बनाने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त निर्देशक सुधीर मिश्रा से प्रशांत वर्मा की बातचीत.
बॉलीवुड में कास्टिंग काउच के सवाल पर मशहूर कोरियोग्राफर ने दिया बयान, कहा हर क्षेत्र में होता है महिलाओं का शोषण, सिर्फ बॉलीवुड के पीछे क्यों पड़े हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सिख संगठनों द्वारा जताई जा रही आपत्ति की वजह से किसी भी सिनेमाघर में फिल्म रिलीज़ नहीं हो सकी है. अकाल तख़्त ने निर्देशक हरिंदर सिंह सिक्का को सिख कौम से बाहर कर देने का आदेश दिया है.
हैदर, रईस, काबिल, घायल वंस अगेन और मोहेंजोदाड़ो जैसी फिल्मों में नरेंद्र झा प्रमुख किरदारों ने नज़र आ चुके थे.
श्रीदेवी एहसासों में हैं, खिलखिलाहट में हैं, चुलबुलेपन में हैं. वो ख़ुद ही एक नृत्य हैं, एक पेंटिंग हैं. वो हम में ही कहीं भरी हुई हैं.
भतीजे की शादी में शामिल होने के लिए दुबई गई हुई थीं. दुबई में ही दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत.
जन्मदिन विशेष: वी. शांताराम उन गिने-चुने प्रमुख फिल्मकारों में से हैं जिन्होंने देश के सांस्कृतिक जीवन में सिनेमा को विशिष्ट स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
लंबे समय से त्वचा के कैंसर से पीड़ित थे. 67 साल के टॉम आॅल्टर ने शुक्रवार रात मुंबई स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली.
पंकज त्रिपाठी जब बिहार के छोटे से गांव से पटना पहुंचे तो उन्हें डॉक्टर बनना था, लेकिन वह छात्र राजनीति में कूद पड़े. राजनीति से रंगमंच के रास्ते उनका सफर मुंबई तक पहुंच गया है.
एक शाम किशोर यश चोपड़ा की भाभी ने खाना बनाने के लिए तंदूर में ज्यों-ही आग लगाई, एक बड़े विस्फोट से समूचा घर दहल उठा. तंदूर में यश ने दंगों में इस्तेमाल के लिए बनाए बम छिपाए हुए थे.
फिल्म एक सरकारी क्लर्क न्यूटन कुमार की कहानी है जिसे छत्तीसगढ़ के हिंसा प्रभावित क्षेत्र में चुनावी ड्यूटी पर लगा दिया जाता है.