दिल्ली विश्वविद्यालय के कैम्पस लॉ फैकल्टी में ‘भारतीय संविधान को चुनौतियां’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण मुख्य वक्ता थे. कार्यक्रम से एक दिन पहले छात्रों से हुए विवाद के बाद विश्वविद्यालय प्रबंधन ने कहा है कि उनके ‘नियंत्रण से बाहर व्यवहार’ को देखते हुए कार्यक्रम रद्द किया गया. वहीं भूषण ने कहा कि जिस वक्ता के विचार इस सरकार के ख़िलाफ़ है, उसे इस विश्वविद्यालय में बोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
स्कूल की वर्दी या यूनिफॉर्म के पीछे का तर्क छात्रों में बराबरी की भावना स्थापित करना है. वह वर्दी विविधता को पूरी तरह समाप्त कर एकरूपता थोपने के लिए नहीं है. उस विविधता को पगड़ी, हिजाब, टीके, बिंदी व्यक्त करते हैं. क्या किसी की पगड़ी से किसी अन्य में असमानता की भावना या हीनभावना पैदा होती है? अगर नहीं तो किसी के हिजाब से क्यों होनी चाहिए?
भाजपा के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव और उडुपी गवर्नमेंट पीयू कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी के उपाध्यक्ष यशपाल सुवर्णा ने कहा कि लड़कियों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे विद्यार्थी नहीं बल्कि आतंकवादी संगठन की सदस्य हैं. हाईकोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ बयान देकर वे विद्वान जजों की अवहेलना कर रही हैं.
कर्नाटक हाईकोर्ट की पीठ ने 15 मार्च अपने फ़ैसले में यह कहते हुए कि इस्लाम में हिजाब आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, पांच फरवरी के सरकार के उस आदेश को बरक़रार रखा, जिसमें उसने ऐसे परिधान पहनने पर रोक लगाई थी, जिससे स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित हो.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब को इस्लाम धर्म का हिस्सा न मानते हुए शिक्षण संस्थानों में इस पर प्रतिबंध को बरक़रार रखा है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए इस्लामिक विद्वान व संगठनों ने हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा बताया, वहीं कुछ नेताओं ने चयन की स्वतंत्रता का सवाल उठाया है.
आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती एक छात्रा निबा नाज़ ने दी है. निबा उन पांच छात्राओं में से नहीं हैं जिन्होंने मूल रूप से हिजाब प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी. वहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाली छात्राओं ने अदालती फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि हम बिना हिजाब कॉलेज नहीं जाएंगे, हम इंसाफ़ और अपने अधिकारों के लिए आगे लड़ाई लड़ेंगे.
कर्नाटक हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध करने वाली उडुपी स्थित ‘गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज’ की मुस्लिम छात्राओं की याचिकाएं ख़ारिज करते हुए कहा कि यूनिफॉर्म का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है, जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकतीं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार को वास्तविक समानता हासिल करने का सही उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले लगातार भेदभाव के पैटर्न को पहचानकर पूरा करना चाहिए.
द वायर या इसके संपादकों को इस अदालती कार्यवाही के बाबत कोई नोटिस नहीं मिला था, न ही उन्हें किसी अन्य माध्यम से इसकी जानकारी दी गई.
संत कवियों की लंबी परंपरा में एक रविदास ही ऐसे हैं जो श्रम को ईश्वर बताकर ऐसे राज्य की कल्पना करते हैं, जो भारतीय संविधान के समता, स्वतंत्रता, न्याय व बंधुत्व पर आधारित अवधारणा के अनुरूप है.
दिसंबर 1946 में स्वतंत्र भारत के लिए जब एक नया संविधान बनाए जाने की कवायद शुरू हुई और संविधान सभा का गठन किया गया तो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं ने यह कहते हुए इसका बहिष्कार किया कि यह 'एडल्ट फ्रेंचाइज़' यानी बालिग मताधिकार के आधार पर आधारित चुनी हुई सभा नहीं है.
वीडियो: क्या केंद्र या राज्य सरकारें किसी धर्म के प्रचार के लिए नागरिकों पर कर लगा सकती हैं? क्या सरकारें लोगों का पैसा धर्म के काम पर ख़र्च कर सकती हैं और इस पर संविधान क्या कहता है? क्या धर्म की शिक्षा उस संस्थान ने दी जा सकती है जो सरकारी ख़र्चे पर चलता है? इन सब पर विस्तार से बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
वीडियो: भारत का संविधान 'धर्म' पर क्या कहता है? धर्म के अधिकार की क्या सीमा है? धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है और क्यों हमारे संविधान बनाने वालों ने एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की. संविधान का अनुच्छेद 25 इस विषय पर बात करता है, जिसके बारे में विस्तार में बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
भारत में जिस दल की केंद्रीय स्तर पर सरकार है और जो ‘स्वयंसेवी संगठन’ वर्चस्व की स्थिति में है उसका दबाव अकादमिक कार्यक्रमों और लोगों के सामान्य वैचारिक निर्माण पर स्पष्ट है. इस प्रक्रिया में किसी शब्द के अर्थ को इतना संकुचित कर दिया जा रहा है कि उसकी अर्थवत्ता ही संदिग्ध हो जा रही है.
वीडियो: अक्सर यह सवाल किए जाते हैं कि संविधान आख़िर है क्या, इसकी ज़रूरत क्यों है, क्या इसमें बदलाव किए जा सकते है, हमारे देश का संविधान विश्वभर में सबसे बड़ा क्यों है और आम आदमी की ज़िंदगी को यह कैसे प्रभावित करता है. ऐसे कई सवालों के जवाब दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.