क्या आईसीएचआर के ज़रिये मोदी सरकार नए इतिहास का आविष्कार कर रही है?

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) द्वारा बीते महीने मध्यकालीन भारत के राजवंशों पर आयोजित प्रदर्शनी में किसी भी मुस्लिम शासक को जगह नहीं दी गई. इसे इतिहास की अवहेलना बताते हुए जानकारों ने परिषद के इरादों पर सवाल खड़े किए हैं.

‘इंडिपेंडेंस’ विभाजन की पृष्ठभूमि में इतिहास और कल्पना का सामंजस्य बिठाने में सफल हुई है

पुस्तक समीक्षा: विभाजन-साहित्य उन असंख्य लोगों का इतिहास है, जिसे शासकीय ब्योरों में भुला दिया गया. चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी का उपन्यास 'इंडिपेंडेंस' इसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है, जहां राष्ट्रों के जन्म, विभाजन की हिंसा, उपद्रव और इसके प्रभावों को आम स्त्रियों की दृष्टि से देखा गया है.

इतिहासकार सुरेंद्र गोपाल की याद में…

स्मृति शेष: बीते दिनों गुज़रे इतिहासकार सुरेंद्र गोपाल अपने समूचे कृतित्व में वोल्गा से गंगा को जोड़ने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक कड़ियों की पड़ताल करते रहे. आने वाले वर्षों में जब भी भारत, रूस और मध्य एशिया के ऐतिहासिक संबंधों की चर्चा होगी, उनका काम अध्येताओं को राह दिखाने का काम करेगा.

इतिहास की रणभूमि

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत में इस समय विज्ञान की लगातार उपेक्षा और अवज्ञा हो रही है. इस क़दर कि वैज्ञानिक-बोध को दबाया जा रहा है. यह ज्ञान मात्र की अवमानना का समय है: बुद्धि, तर्क, तथ्य, संवाद, असहमति आदि सभी हाशिये पर फेंके जा रहे हैं.

जगतार सिंह ग्रेवाल: पंजाब और सिख समुदाय का अतीत और विविधताएं दर्ज करने वाले इतिहासकार

स्मृति शेष: इतिहासकार जेएस ग्रेवाल अपने काम में मध्यकालीन भारत और विशेष रूप से पंजाब की सामाजिक विविधता और सांस्कृतिक बहुलता को रेखांकित करते रहे. इसके अलावा उन्होंने सिख इतिहास से जुड़े दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का जो संकलन-संपादन किया, वह इतिहास के अध्येताओं के लिए प्रेरणादायी है.

बीडी चट्टोपाध्याय: पूर्व मध्यकालीन भारत के अप्रतिम इतिहासकार

स्मृति शेष: ऐसे समय में जब भारतीय इतिहास और संस्कृति की बहुलता को एकांगी बना देने के लिए पूरा ज़ोर लगाया जा रहा हो और जब ‘वन नेशन’ जैसे नारों को उछालकर देश की वैविध्यपूर्ण संस्कृति को समरूप बनाने के प्रयास हो रहे हों, बीडी चट्टोपाध्याय सरीखे इतिहासकारों का कृतित्व और भी प्रासंगिक हो उठता है.

‘ताजमहल की ज़मीन के एवज में शाहजहां ने जयपुर के राजपरिवार को हवेलियां दी थीं’

देश में स्मारकों को लेकर किए जा रहे दावों के बीच राजसमंद से भाजपा सांसद और जयपुर के राजघराने की सदस्य दिया कुमारी ने ताजमहल पर अपनी मिल्कियत का दावा किया है. लेखक और ब्लॉगर राना सफ़वी बताती हैं कि इस बात के पुख़्ता प्रमाण मौजूद हैं कि ताज की ज़मीन के बदले शाही परिवार को चार हवेलियां दी गई थीं.

प्रोफेसर भैरवी प्रसाद साहू: क्षेत्रीय इतिहास के पैरोकार

स्मृति शेष: इस महीने की शुरुआत में प्रसिद्ध इतिहासकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक भैरवी प्रसाद साहू का निधन हो गया. साहू ने अपने लेखन में राज्य और धर्म के अंतरसंबंध, धार्मिक कर्मकांड, स्थानीयताओं और स्थानीय समाजों के विकास की ऐतिहासिक प्रक्रिया को रेखांकित किया है.

राष्ट्रीय ओवरसीज़ छात्रवृत्ति: वंचित तबके के छात्रों को विदेश में क्यों नहीं पढ़ने देना चाहती सरकार

केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति और भूमिहीन कृषि श्रमिक परिवारों से आने वाले छात्रों को विदेश में पढ़ने के लिए दी जाने वाली राष्ट्रीय ओवरसीज़ छात्रवृत्ति योजना में बिना किसी से सलाह-मशविरे और उससे लाभांवित तबकों की राय जाने बिना किए गए विषय संबंधी बदलाव बहुसंख्यकवादी असुरक्षा का नतीजा हैं.

हिंदुस्तानियों की मां का दर्जा पाने वाली कस्तूरबा के निधन को किस तरह याद किया जाना चाहिए

प्रासंगिक: भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागिता के चलते गिरफ़्तार की गईं कस्तूरबा ने हिरासत में दो बार हृदयाघात झेला और कई माह बिस्तर पर पड़े रहने के बाद 22 फरवरी 1944 को उनका निधन हो गया. सुभाष चंद्र बोस ने इस ‘निर्मम हत्या के लिए’ ब्रिटिश सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ‘कस्तूरबा एक शहीद की मौत मरी हैं.’

संविधान निर्माण के समय सोशलिस्ट पार्टी का सुर अलग क्यों था

दिसंबर 1946 में स्वतंत्र भारत के लिए जब एक नया संविधान बनाए जाने की कवायद शुरू हुई और संविधान सभा का गठन किया गया तो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं ने यह कहते हुए इसका बहिष्कार किया कि यह 'एडल्ट फ्रेंचाइज़' यानी बालिग मताधिकार के आधार पर आधारित चुनी हुई सभा नहीं है.

हिंदुत्व के पैरोकार महान अशोक से इतने ख़फ़ा क्यों रहते हैं

अशोक ने जिस भारत का तसव्वुर किया था, जिस तरह सब निवासियों के मिल-जुलकर रहने, प्रगति करने की बात की थी, उससे केंद्र में सत्तासीन हिंदुत्व वर्चस्ववादी हुकूमत और उनके समर्थकों को गहरी तकलीफ़ होती है.

इतिहास से सत्ताधीशों की बदले की कार्रवाइयों को कैसे दर्ज करेगा इतिहास

इस बहुरंगी देश को इकरंगी बनाने की क़वायदें अब गणतांत्रिक प्रतीकों व विरासतों को नष्ट करने के ऐसे अपराध में बदल गई हैं कि उन्हें इतिहास से बुरे सलूक की हमारी पुरानी आदत से जोड़कर भी दरकिनार नहीं किया जा सकता.