अगम बहै दरियाव: जीवन की साधारणता का आख्यान

पुस्तक-समीक्षा: शिवमूर्ति के 'अगम बहै दरियाव' को आंचलिक उपन्यास के खांचे में रखकर देखना उसे न्यून करना होगा. इसे एक सामाजिक-राजनीतिक समझ पैदा करने वाला संवेदनशील उपन्यास माना जाना चाहिए, जिसे इसके नायकों- किसानों और मजदूरों, दलित-पिछड़ों-स्त्रियों- के त्रासद संघर्ष के रूप में पिरोकर बयां किया गया है.

बंगनामा: लकड़ी की सीढ़ी चढ़ता विकास

दुमंजिला पंचायत भवन के निर्माण में जब सरकारी राशि पूरी खर्च हो गई और छत पर बने कमरों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाने का पैसा नहीं बचा, तो लकड़ी की नसैनी टिका दी गई. बंगनामा स्तंभ की चौदहवीं क़िस्त.

नीमका: इक्कीसवीं सदी में उत्तर भारत के गांवों के समाजशास्त्र का एक नमूना

आंबेडकर गांवों को भारतीय गणतंत्र की 'इकाई' मानने से इनकार करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार गांव में सिर्फ एक समान ग्रामीण नहीं रहते बल्कि 'अछूतों' का 'छूतों' से विभाजन साफ दिखाई देता है. ग्रेटर नोएडा में भारत सरकार द्वारा 'आदर्श गांव' घोषित नीमका में 18 अप्रैल को आंबेडकर की प्रतिमा तोड़े जाने की घटना के बाद दलित समुदाय पर लगे आरोपों में यही विभाजन स्पष्ट नज़र आता है.