सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संशोधन, जिसके तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए थे- की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि लगभग 44 वर्षों के बाद इस संवैधानिक संशोधन को चुनौती देने का कोई वैध कारण या औचित्य नहीं है.
लोकसभा अध्यक्ष बनते ही ओम बिड़ला ने 1975 के आपातकाल पर एक बयान पढ़ा और इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया. इस पर विपक्ष की आपत्ति के बाद सदन में हंगामा हुआ और कार्यवाही गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी गई.
आम तौर पर आपातकाल को भारतीय जनतंत्र के इतिहास में बड़ा व्यवधान माना जाता है. पर उसके पहले हुए उस आंदोलन के बारे में इस दृष्टि से चर्चा नहीं होती है कि वह जनतांत्रिक आंदोलन था या ख़ुद जनतंत्र को जनतांत्रिक तरीक़े से व्यर्थ कर देने का उपक्रम. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्ताईसवीं क़िस्त.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान बार-बार कच्चाथीवू द्वीप का मुद्दा उठा रहे हैं. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा कि उनका सोचना है कि इस पर चर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह हल किया जा चुका मुद्दा है और द्वीप पर कोई विवाद नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह आरोप लगाए जाने के बाद कि तत्कालीन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को दे दिया था, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने पूछा कि मोदी ने अपने 10 साल के शासन के दौरान इसे वापस पाने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए.
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पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की है. 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल किए गए थे.
अपने स्वर्णकाल में भी ‘असुरक्षा’ की शिकार हिंदुत्ववादी जमातों ने डॉ. मनमोहन सिंह को छोड़कर हर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को हिंदुत्ववादी क़रार देने या खींच-खांचकर हिंदुत्व के पाले में लाने के प्रयास किया है. इंदिरा गांधी भी इससे अछूती नहीं रही हैं.
जन्मदिन विशेष: स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गांधीवादी-समाजवादी’ जमात के सदस्य और दर्शन व इतिहास के लोकप्रिय व्याख्याता रहे जेबी कृपलानी को उनकी ‘चिर असहमति’ के लिए भी जाना जाता है. इसका नतीजा यह भी रहा कि वे बार-बार अपनी भूमिकाएं पुनर्निर्धारित करते रहे.
17 अक्टूबर को केंद्र सरकार द्वारा सभी मंत्रालयों को जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि वे देश के सभी ज़िलों से ऐसे सरकारी अधिकारियों के नाम दें, जिन्हें मोदी सरकार की 'पिछले नौ वर्षों की उपलब्धियों को दिखाने/जश्न मनाने' के एक अभियान के लिए 'जिला रथ प्रभारी (विशेष अधिकारी)' के तौर पर तैनात किया जाए.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुओं को संगठित करना मुसलमानों और ईसाइयों का विरोध नहीं है. कभी-कभी किसी क्रिया पर प्रतिक्रिया होती है. कभी-कभी जैसे को तैसा जैसी प्रतिक्रिया होती है, लेकिन सही मायने में शांति और सहिष्णुता हिंदुत्व के मूल्य हैं.
इंदिरा गांधी यदि नरेंद्र मोदी की तरह बिना आपातकाल वैसे हालात पैदाकर लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण को अंजाम दे सकतीं, तो भला आपातकाल का ऐलान क्यों करातीं?
अभिषेक चौधरी द्वारा लिखी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी के पहले हिस्से 'वाजपेयी: द एसेंट ऑफ द हिंदू राइट' उनके राजकुमारी कौल से रिश्ते, उनकी बेटी नमिता समेत कई अनछुए पहलू दर्ज किए गए हैं. करण थापर से बातचीत में अभिषेक ने किताब के महत्व और इसे लिखने की ज़रूरत पर भी बात की है.
धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ कविता जब भी याद आती है तो याद आता है कि इस बीच उक्त इतिहास की ऐसी पुनरावृत्ति हो गई है कि इमरजेंसी की मुनादी बिना ही देश में इमरजेंसी से भी विकट हालात पैदा कर दिए गए हैं, मौलिक अधिकारों को छीनने की घोषणा किए बिना उन्हें सरकार की अनुकंपा का मोहताज बना दिया गया है.
फैक्ट-चेक: नरेंद्र मोदी और गुजरात दंगों पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर हमला बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि संस्थान ने 1984 के दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों पर डॉक्यूमेंट्री क्यों नहीं बनाई. हालांकि इंटरनेट पर एक सामान्य सर्च बीबीसी द्वारा 1984 के नरसंहार और उससे जुड़ी कवरेज के कई प्रमाण दिखा देती है.