प्रख्यात न्यायविद् और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री शांति भूषण ने वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कराने वाले ऐतिहासिक मामले में शामिल थे. वे सार्वजनिक महत्व के कई मामलों में पेश हुए, जिसमें रफाल लड़ाकू विमान सौदा भी शामिल है.
बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस की आलोचना को लेकर अगर कुछ नया है तो वह है इस पर हुआ हंगामा. श्रमण संस्कृति के पैरोकार विद्वान व सामाजिक कार्यकर्ता, तुलसीदास व रामचरितमानस की आलोचना में न सिर्फ इससे कहीं ज़्यादा कडे़ शब्द इस्तेमाल कर चुके हैं. एक दौर में तुलसीदास को ‘हिंदू समाज का पथभ्रष्टक’ तक क़रार दिया जा चुका है.
राजस्थान विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा कि सत्ता आती-जाती रहती है. इंदिरा गांधी की सत्ता भी चली गई जबकि लोग कहते थे कि उन्हें कोई हटा नहीं सकता. एक दिन आप भी चले जाएंगे इसलिए हालात इतने भी न बिगाड़े कि सुधारा न जा सके.
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के सदस्य एस. गुरलाद सिंह कहलों ने 1984 के सिख-विरोधी दंगों में नामजद 62 पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की मांग की थी. मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जस्टिस एसएन ढींगरा के नेतृत्व वाली एसआईटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि दंगों में 'दिखावटी' जांच की गई थी.
उस दौर में हमारी राजनीति इतनी पतित हुई ही नहीं थी कि नेताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मनों के रूप में देखा जाता, दुश्मन की तरह उनकी लानत-मलामत की जाती और उन्हें कमतर दिखाने या गिराने की कोशिश में ख़ुद को उनसे भी नीचे गिरा लिया जाता.
मोहम्मद हसन के नाटक ‘ज़ह्हाक’ में सत्ता के उस स्वरूप का खुला विरोध है जिसमें सेना, कलाकार, लेखक, पत्रकार, अदालतें और तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं सरकार की हिमायती हो जाया करती हैं. नाटक का सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुल्क की मौजूदा सत्ता में ‘ज़ह्हाक’ कौन है? क्या हमें आज भी जवाब मालूम है?
यूपी सरकार ने 1984 के सिख-विरोधी दंगों के दौरान कानपुर में 127 लोगों की मौत की फिर से जांच के लिए मई 2019 में एसआईटी का गठन किया था, जो कुल 11 मामलों की जांच कर रही है. इसे लेकर अब तक 11 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. पुलिस ने बताया कि एसआईटी ने पूर्व में 96 मुख्य संदिग्धों को चिह्नित किया था, उनमें से 22 की मौत हो चुकी है.
भारत का लोकतंत्र दिनदहाड़े दम तोड़ रहा है. प्रेस को घेरा जा रहा है, लेकिन उसे अडिग होकर खड़े होने के तरीके तलाशने होंगे.
इस बहुरंगी देश को इकरंगी बनाने की क़वायदें अब गणतांत्रिक प्रतीकों व विरासतों को नष्ट करने के ऐसे अपराध में बदल गई हैं कि उन्हें इतिहास से बुरे सलूक की हमारी पुरानी आदत से जोड़कर भी दरकिनार नहीं किया जा सकता.
अमर जवान ज्योति की स्थापना उन भारतीय सैनिकों की याद में की गई थी, जो कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे. इस युद्ध में भारत की विजय हुई थी और बांग्लादेश का गठन हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसका उद्घाटन किया था. कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार का यह क़दम सैनिकों के बलिदान के इतिहास को मिटाने की तरह है.
न्यायाधीश नानावटी ने 2002 के गोधरा दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट 2014 में गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी थी. गोधरा दंगों में 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे, जिसमें से ज़्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय के थे. जस्टिस नानावटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मंत्रिपरिषद को दंगों से संबंधित आरोपों में क्लीनचिट दी थी.
वीडियो: कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव से पहले लगातार सभाओं में भाग ले रही हैं. बीते दिनों गोरखपुर में ऐसी ही एक रैली को संबोधित करते हुए हुए उन्होंने कहा कि मर जाऊंगी, जान दे दूंगी, लेकिन भाजपा के साथ कभी मिलावट नहीं होने दूंगी. प्रियंका गांधी की चुनावी रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी और निवेदिता झा से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने बातचीत की.
गोरखपुर की रैली से कांग्रेस ने दिखाया है कि अब वह भी भाजपा, सपा, बसपा की तरह बड़ी रैली करने में सक्षम है. पार्टी पूर्वांचल में एक और रैली करने के बाद लखनऊ में बड़ी जनसभा करने की तैयारी में है. बड़ी रैलियां या जनसभाएं चुनावी सफलता की गारंटी नहीं हैं, लेकिन इनके ज़रिये कांग्रेस यह साबित करने की कोशिश करेगी कि लोग उससे जुड़ रहे हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर अख़बारों में विज्ञापन नहीं देने पर पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी सरकार की आलोचना की है. उन्होंने एक अन्य ट्वीट में दिल्ली कांग्रेस की नई कार्यकारिणी समिति में एक स्थायी आमंत्रित सदस्य के तौर पर जगदीश टाइटलर की नियुक्ति की ओर इशारा किया और हैरानी जताई कि इंदिरा गांधी को याद करने के लिए पंजाब सरकार का विज्ञापन नहीं जारी करने का क्या इससे कोई संबंध है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में एक कार्यक्रम में शामिल हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि साल 1975 में वह जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा थे, जिन्होंने ऐसा आदेश पारित किया, जिसमें इंदिरा गांधी को अयोग्य क़रार दिया गया. इस निर्णय ने देश को हिलाकर रख दिया था.