1971: वह साल जब भारत ने अपने बारे में अच्छा महसूस किया

भारतीय इतिहास में 1971 एक ऐसे साल के तौर पर दर्ज है, जब मुश्किल यथार्थ के बीच भी भारत ने अपने बारे में अच्छा महसूस किया. यह सिर्फ उम्मीद का साल नहीं था, भारत में छिपे जीत के जज़्बे की आत्मपहचान का वर्ष भी था.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, आपातकाल एक ग़लती थी

एक ऑनलाइन चर्चा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि उस दौरान जो भी हुआ वह ग़लत था, लेकिन वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य से मौलिक रूप से बिल्कुल अलग था, क्योंकि कांग्रेस ने कभी भी देश के संस्थागत ढांचे पर क़ब्ज़ा करने का प्रयास नहीं किया. उन्होंने दावा किया कि पार्टी में चुनाव कराने की मांग को लेकर उनकी आलोचना की गई थी.

अंग्रेज़ गांधी को ‘आंदोलनजीवी’ बताकर मज़ाक उड़ाते, तो क्या हम आज़ाद होते

काश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातें बनाने के बजाय समझते कि आंदोलन तो होते ही सत्ताओं की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए हैं और उन्हें ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि ख़ुद पर उनका अंकुश हमेशा महसूस किया जाता रहे.

1974 में नरेंद्र मोदी ने आंदोलनजीवियों को सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतारा था…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि कुछ समय से देश में एक नई जमात पैदा हुई है, आंदोलनजीवी. वकीलों, छात्रों, मज़दूरों के आंदोलन में नज़र आएंगे, कभी पर्दे के पीछे, कभी आगे. ये पूरी टोली है जो आंदोलन के बिना जी नहीं सकते और आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं.

सीआईसी ने केंद्र द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान ज़ब्त सामग्री की सूची जारी न करने को मंज़ूरी दी

1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकियों को निकालने के लिए सेना द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था. एक आरटीआई आवेदन में केंद्रीय गृह मंत्रालय से उस सामान की सूची और वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी मांगी गई थी जो इस कार्रवाई में ज़ब्त किया गया था, जिससे मंत्रालय ने इनकार कर दिया.

1984 सिख दंगा: सुप्रीम कोर्ट ने सज्जन कुमार की ज़मानत याचिका ख़ारिज की, कहा- यह छोटा मामला नहीं

17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 सिख विरोधी दंगों से संबंधित एक मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है.

1984 के सिख विरोधी दंगों के दोषियों को सज़ा दिलाने में पुलिस-प्रशासन की दिलचस्पी नहीं थी: रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1984 के दंगों संबंधी मामलों की जांच के लिए बनाए गए विशेष जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि तत्कालीन केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस ने दंगों के दौरान दंगाइयों पर हत्या, आगजनी और हिंसा के मामले दर्ज करने की कोशिश नहीं की, साथ ही आपराधिक मामलों को छिपाने का प्रयास भी किया.

जब जेपी के जीवित रहते हुए संसद ने उन्हें श्रद्धांजलि दे दी थी…

गैरकांग्रेसवाद का सिद्धांत भले ही डाॅ. राममनोहर लोहिया ने दिया था लेकिन उसकी बिना पर कांग्रेस की केंद्र की सत्ता से पहली बेदखली 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के तत्वावधान में ही संभव हुई.

1984 दंगा: बढ़ सकती हैं कमलनाथ की मुश्किलें, एसआईटी ने फिर खोले सात मामले

गृह मंत्रालय द्वारा गठित विशेष जांच दल के 1984 दंगों से जुड़े सात मामलों को फिर से खोलने के निर्णय के बाद दिल्ली के विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि कमलनाथ ने इन सात मामलों में से एक के पांच आरोपियों को कथित तौर पर शरण दी थी.

सरकार अब संवाद से परे हो चुकी है…

एक तरफ कहा जाता है कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है, उस लिहाज़ से कश्मीरी भी अभिन्न होने चाहिए थे. तो फिर इस बदलाव की प्रक्रिया में उनसे बात क्यों नहीं की गई? उनकी राय क्यों नहीं पूछी गई?

कश्मीर का मन मरघट बन गया है…

कहा जा रहा है कि लोकतंत्र बहुमत से ही चलता है और बहुमत है, लेकिन ‘बहुमत’ मतलब बहु-मत हों, विभिन्न मत, लेकिन संसद में क्या मतों का आदान-प्रदान हुआ? एक आदमी चीख रहा था, तीन सौ से ज्यादा लोग मेजें पीट रहे थे. यह बहुमत नहीं, बहुसंख्या है. आपके पास मत नहीं, गिनने वाले सिर हैं.

कब तक भूख और गोली से मारे जाएंगे आदिवासी?

सोनभद्र में किसी ने उन आदिवासियों की भुखमरी के हालात की तह में जाने की कोशिश तक नहीं की, यह सवाल नहीं पूछा कि मौत का ख़तरा होते हुए भी वे इस अनउपजाऊ क्षेत्र में ज़मीन से क्यों चिपके हुए थे?

1984 सिख विरोधी दंगे: सुप्रीम कोर्ट ने 33 लोगों को जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका पर यह फैसला दिया है. इससे पहले निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने इन लोगों को दोषी ठहराया था और पांच वर्ष जेल की सजा सुनाई थी.

आपातकाल: नसबंदी से मौत की ख़बरें न छापी जाएं

आपातकाल के 44 साल बाद इन सेंसर-आदेशों को पढ़ने पर उस डरावने माहौल का अंदाज़ा लगता है जिसमें पत्रकारों को काम करना पड़ा था, अख़बारों पर कैसा अंकुश था और कैसी-कैसी ख़बरें रोकी जाती थीं.

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