इप्टा ने आज़ादी के 75वें वर्ष के अवसर पर 'ढाई आखर प्रेम के' शीर्षक से हुई सांस्कृतिक यात्रा का आयोजन किया था. इसके समापन समारोह में लेखक, अभिनेता व निर्देशक सुधन्वा देशपांडे द्वारा 'नाटक में प्रतिरोध की धारा' विषय पर दिया गया संबोधन.
इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन छतरपुर ज़िले में पांच दिवसीय थिएटर महोत्सव का आयोजन करने वाला था. इस बीच बजरंग दल की अगुवाई वाले समूह ने एसडीएम को पत्र लिखकर महोत्सव में होने वाले दो नाटकों पर आपत्ति जताते हुए इसे रद्द करने को कहा. ऐसा न होने पर उग्र प्रदर्शन की धमकी दी गई थी.
साक्षात्कार: भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे का जो असर समाज पर पड़ा, उसकी पीड़ा सिनेमा के परदे पर भी नज़र आई. एमएस सथ्यू की 'गर्म हवा' विभाजन पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. इस फिल्म समेत सथ्यू से उनके विभिन्न अनुभवों पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया की बातचीत.
वरिष्ठ कलाकार शौकत कैफ़ी को याद कर रही हैं पूर्व सांसद सुभाषिनी अली. सुभाषिनी फिल्म उमराव जान की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर थीं, जिसमें शौकत कैफ़ी की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
बेपनाह प्रेम के एहसास में हर तरह के अभाव से लड़ते हुए जीवन की जद्दोजहद से कभी हौसला न हारने वाली शौकत कैफ़ी की पूरी ज़िंदगी एक इंक़लाबी किताब है. असीमित उड़ान के सपने देखने वालों के लिए वे ख़ुद एक संस्मरण हैं.
वरिष्ठ कलाकार और थिएटर हस्ती शौक़त कैफ़ी 93 साल की थीं और लंबे समय से आयु संबंधी बीमारियों से जूझ रही थीं.
हबीब तनवीर की जितनी थियेटर पर पकड़ थी, उतनी ही मज़बूत पकड़ समाज, सत्ता और राजनीति पर थी. वे रंगमंच को एक पॉलिटिकल टूल मानते थे. उनका कहना था कि समाज और सत्ता से कटकर किसी क्षेत्र को नहीं देखा जा सकता.
सिनेमा निर्माण के इतने दशकों के बाद भी हिंदुस्तानी सिनेमा में महिला निर्देशकों की संख्या को उंगलियों पर गिना जा सकता है. सिनेमाई दुनिया में भी घोर लैंगिक असमानता है.