जनतंत्र दिमाग़ को मुक्त रखने का संघर्ष है, जो पूंजीवाद से लड़े बिना मुमकिन नहीं

पूंजीवाद स्वाभाविक और प्राकृतिक जान पड़ता है. लेकिन मनुष्य निर्विकल्प अवस्था को कैसे स्वीकार कर ले तो फिर मनुष्य कैसे रहे? कविता में जनतंत्र स्तंभ की अठारहवीं क़िस्त.