… मुल्क को आगे बढ़ना है और उसके लिए ज़रूरी है कि जो जहां है, वहीं ठप कर दिया जाए!

धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ कविता जब भी याद आती है तो याद आता है कि इस बीच उक्त इतिहास की ऐसी पुनरावृत्ति हो गई है कि इमरजेंसी की मुनादी बिना ही देश में इमरजेंसी से भी विकट हालात पैदा कर दिए गए हैं, मौलिक अधिकारों को छीनने की घोषणा किए बिना उन्हें सरकार की अनुकंपा का मोहताज बना दिया गया है.

आज के राजनीतिक परिदृश्य में शरद यादव जैसे अनुभवी नेता की उपस्थिति महत्वपूर्ण होती

शरद यादव तकरीबन चार दशक के लंबे राजनीतिक दौर के महत्वपूर्ण किरदार और गवाह रहे हैं. काश, उन्होंने अपनी कोई सुसंगत आत्मकथा लिखी होती, जिससे राजनीति की नई पीढ़ी, ख़ासकर समता, सेकुलरिज़्म और सामाजिक न्याय के लिए लड़ रहे युवाओं को सीखने को मिलता कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं.

कांग्रेस की मौत की कामना करना कितना उचित है?

पिछले पांच साल से देश को कांग्रेसमुक्त करने का आह्वान भाजपा नेताओं के द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन न सिर्फ यह कि वह अप्रासंगिक नहीं हुई, बल्कि इस चुनाव में भी भाजपा के लिए वही संदर्भ बिंदु बनी रही. जनतंत्र की सबसे अधिक दुहाई देनेवाले समाजवादियों को जनसंघ या भाजपा के साथ कभी वैचारिक या नैतिक संकट हुआ हो, इसका प्रमाण नहीं मिलता.

‘लालू-राबड़ी मोर्चा’ बनाकर तेज प्रताप ने अपनी मां से की सारण से चुनाव लड़ने की मांग

तेज प्रताप यादव ने 'लालू-राबड़ी मोर्चा' के गठन का ऐलान करते हुए कहा, 'सारण मेरे पिता लालू जी और मां राबड़ी जी की सीट है. अगर मेरी मां वहां से मैदान में नहीं उतरतीं हैं तो मैं एक निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ूंगा और इसे जीतने की पूरी कोशिश करूंगा.'

क्या स्मार्ट सिटी का सपना देख रहे भारत में लोकनायक के गांव की सुध लेना वाला कोई नहीं?

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का पैतृक गांव सिताब दियारा देश के विभिन्न गांवों की बदहाली और सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैये की बड़ी मिसाल है. आदर्श ग्राम योजना के तहत भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी द्वारा इसे गोद लेने के बावजूद इसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.

‘कृष्ण’ और ‘बलराम’ को लड़ाने की कोशिश हो रही है: तेज प्रताप यादव

राजद उपाध्यक्ष और अपनी मां राबड़ी देवी के पटना स्थित आवास पर पार्टी नेताओं की बैठक से तेज प्रताप के अनुपस्थित रहने पर सत्ताधारी जदयू और भाजपा ने दावा किया था कि लालू परिवार के भीतर अंतर्कलह चल रही है.

जो आज दूसरों को ‘एंटी नेशनल’ बता रहे हैं, कभी वे भी ‘देशद्रोही’ हुआ करते थे

एंटी-नेशनल, भारत विरोधी जैसे शब्द आपातकाल के सत्ताधारियों की शब्दावली का हिस्सा थे. आज कोई और सत्ता में है और अपने आलोचकों को देश का दुश्मन बताते हुए इसी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है.