केदारनाथ सिंह: दुनिया से मिलने को निकला एक कवि

कविता का पूरा अर्थ हासिल कर पाना और संप्रेषणीयता का प्रश्न, हर कवि को इन दो कसौटियों पर अनिवार्यतः कसा जाता था. केदारनाथ सिंह की कविता, हर खरी कविता की तरह इन दोनों के प्रलोभन से बचती थी.

‘कथाओं से भरे इस देश में… मैं भी एक कथा हूं’

हिंदी साहित्य के संसार में केदारनाथ सिंह की कविता अपनी विनम्र उपस्थिति के साथ पाठक के बगल में जाकर खड़ी हो जाती है. वे अपनी कविताओं में किसी क्रांति या आंदोलन के पक्ष में बिना शोर किए मनुष्य, चींटी, कठफोड़वा या जुलाहे के पक्ष में दिखते हैं.

केदारनाथ सिंह: वो कवि जो ‘तीसरे’ की खोज में पुलों से गुज़र गया

केदारनाथ सिंह की कविताओं में सबसे अधिक आया हुआ बिंब वह है जो 'जोड़ता' है. उन्हें वह हर चीज़ पसंद थी जो जोड़ती है. वो चाहे सड़क हो या पुल, शब्द हो या सड़क, जो लोगों को मिलाती है, उनकी आंखों में एक छवि बनकर तैरती रहती और फिर पिघलकर कविता में ढल जाती.