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पुस्तक समीक्षा: कुलदीप कुमार की कविताएं पिछले तीन दशकों में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में आती रही हैं, पत्रकार की हैसियत से वे साहित्य-संस्कृति की जानी-मानी शख्सियतों से बातचीत करते रहे हैं. ऐसे अदीब से यह उम्मीद रहती है कि अपनी मौलिक रचनाओं में वे नई अंतर्दृष्टि की तलाश करेंगे. हाल ही में प्रकाशित उनके संग्रह 'बिन जिया जीवन' में सादगी के साथ इस उम्मीद को पूरा करने की कोशिश है.
संस्कृत हिंदू धर्म ग्रंथों की भाषा है, इसीलिए भाजपा का उससे कुछ अधिक ही लगाव है. यह अलग बात है कि इस भाषा की समृद्ध साहित्यिक-दार्शनिक विरासत से उसका कोई ख़ास परिचय नहीं है.